शुक्रवार, 13 सितंबर 2019

ठहर गई है जिंदगी...

ठहर गई है जिंदगी
बस चल रही हूं मैं,
सांसों की आंच में देखो
पिघल रही हूं मैं।

ख्वाब ख्वाहिशें जुस्त - जू
सब बीती बातें हैं
'आज ' है एक आग
जिसमें जल रही हूं मैं।

ना जाने कितने दास्तां
समेट आंखो में
मन की बतिया कहने को
मचल रही हूं मैं।

जो देखते हैं अब
पुराने अख़बार की तरह
क्यों भूलते हैं
उनकी ही ग़ज़ल रही हूं मैं।

हर एक शाम सुरमई
सूरज की अोट से
कहती है जिंदगी थाम लो
निकल रही हूं मैं।

ANUPRIYA