शुक्रवार, 13 सितंबर 2019

ठहर गई है जिंदगी...

ठहर गई है जिंदगी
बस चल रही हूं मैं,
सांसों की आंच में देखो
पिघल रही हूं मैं।

ख्वाब ख्वाहिशें जुस्त - जू
सब बीती बातें हैं
'आज ' है एक आग
जिसमें जल रही हूं मैं।

ना जाने कितने दास्तां
समेट आंखो में
मन की बतिया कहने को
मचल रही हूं मैं।

जो देखते हैं अब
पुराने अख़बार की तरह
क्यों भूलते हैं
उनकी ही ग़ज़ल रही हूं मैं।

हर एक शाम सुरमई
सूरज की अोट से
कहती है जिंदगी थाम लो
निकल रही हूं मैं।

ANUPRIYA

बुधवार, 3 अप्रैल 2019

कलम - स्याही

जरा सम्भाल कर कागज पे रखो
टुकड़ा स्याही का,
जज़्बात लिखना इतना भी आसान नहीं है।
तख्त पलट जाते हैं इनके इक इशारे पे,
फ़्जों से खेलना बच्चों वाला काम नहीं है।

ताक़त है तुममें हर पल नया इतिहास लिखने की,
जो कल स्वर्णिम बनाए ऐसी कहानी आज लिखने की,
दोहराए जवानी हर सदी में जोश से भर कर
ऐसे गीत लिखने की, ऐसे साज़ लिखने की।

हुनर ये सोच कर परमात्मा ने तुमको बक्शा है
कलम मायूस ना हो जाए ,समझ लो ये भी ज़िम्मा है।
मुनासिब जो नहीं इंसानियत के वास्ते देखो
तुम्हारी शायरी को उन हदों से दूर रहना है।

कवि की कल्पना का
हर पल नया आयाम लिखते हो,
मोहम्मद की कहानी तो कभी तुम राम लिखते हो।
स्याही ना छूये तो खुदा भी अनकहा रह जाएगा,
इसलिए कभी गीता
तो कभी कुरान लिखते हो।

लिखने का इल्म है तो  सुबह
तुम नई लिख दो,
पसीने से तपा दिन, शाम लेकिन सुरमई लिख दो।
हवा का एक झोंका नाम कर दो उन परिंदो के
किस्मत में जिनके पल भर का भी आराम नहीं है।

जरा सम्भाल कर कागज पे रखो
टुकड़ा स्याही का,
जज़्बात लिखना इतना भी आसान नहीं है।
तख्त पलट जाते हैं इनके इक इशारे पे,
लब्जो से खेलना बच्चों वाला काम नहीं है।

बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

तू अगर मेरा हो जाए

लब्जों को क्या चाहिए
बस एक ख्याल
जिसे अपनी बाहों में समेट
वो मुक्कमल हो जाए।

मिटा के नामों- निशान
अपना वजूद, अपनी पहचान
नदी की हसरत यही है कि
वो समंदर में खो जाए।

समझाए दुनिया को भले
बना के वो बहाने सौ
दिल यही चाहता है
मेरी गलियों में वो रोज आए।

ये दुनिया भर की दौलत
साजो- सामान चीज ही क्या है
खुदा को छोड़ दू मै
तू अगर मेरा हो जाए।

गुरुवार, 17 जनवरी 2019

शाम होते ही मेरी बाहों में चले आना

तुम्हारे लम्हों से सदियों के बीच
के सफर में
वो जो सूकून के दो पल है ना
उसी में है मेरा आशियाना,
                               
हां! उसी चौक पे
जहां पेशानी पे तुम्हारे
शिकन आई थी ...
और तुम  बैठ गए थे थक कर...
याद है उसी वक्त किसी ने तुम्हे सहलाया था,
तुम्हारे गालों पे ढलकते आसुओं को पोंछ कर,
तुम्हे उम्मीद के कुछ फलसफे भी दे आया था।
तुम्हारी नींदों ने वही गिरा दिए थे
अपने टूटे हुए कुछ अधूरे से ख्वाब,
मैंने ही तो बड़ी शिद्दत से उन्हें उठाया था...
पहचाना ?

अपने सपनों के पंखों को फैला कर
आजाद परिंदो सा तुम उड़ों
समंदर की गहराई ,अनंत की ऊंचाई भी छू लो
अपनी इन ख्वाहिशों की धुन में लेकिन
अपने घर का पता तो मत भूलो...
अरे यार! तुम्हे चाहिए होगी ये दुनिया तमाम
मेरी तो दुनिया ही तुम हो...
सुनो!
गुजर जाए तुम्हारी सहर कहीं
पर शाम होते ही तुम
मेरी बाहों में चले आना

अनुप्रिया

मंगलवार, 8 जनवरी 2019

मै लिखती हूं तुम गा देना...

मैं लिखती हूं ,तुम गा देना।
                     वो काव्य जो बहता है प्रतिक्षण
                     हम दोनों की आंखों में,
                     लयबद्ध भी होता रहता है
                     हौले- हौले से सांसों में,
मैं शब्दों में उसे पिरोती हूं
तुम सुर से उसे सजा देना।
मैं लिखती हूं , तुम गा देना।
                     मैं अविरल चंचल सी सरिता,
                      तुम चिर - थिर - स्थिर सागर हो।
                      मैं कोरी डोरी कल्पना की,
                      तुम सच हो, फिर भी सुंदर हो।
उत्तर  - दक्षिण का संगम ये
हो गया कैसे समझा देना।
मैं लिखती हूं तुम गा देना।
                        तुमसे मिल कर मेरे प्रियतम
                         मेरी कविता को अर्थ मिला,
                         जी उठी पंक्तियां भावों में
                         हर मुक्तक को संदर्भ मिला।
\,मेरी प्राण हीन रचनाओं में तुम
जीवन का अलख जगा देना।
मैं लिखती हूं तुम गा देना।
                         जीवन दो पल की बात प्रिय
                          ण  भर में होगी रात प्रिय
                          जब देह चिता बन जाएगी
                           छूटेगा ये भी साथ प्रिय।
जब नाम हमारा कहे कोई
राधे - कृष्णा सा साथ कहे,
मैं हृदय - हृदय में बस जाऊं
तुम प्राण - प्राण महका देना।
                             मैं लिखती हूं तुम गा देना।
                              मैं लिखती हूं तुम गा देना।