गुरुवार, 23 सितंबर 2010



मेरे हमसफ़र!
तुम्हारे प्यार के आगोश में खोये हुए
जो दिन गुजर गए ,
उसके हर पल ना जाने कब
मेरी आँखों में ठहर गए।


अब हर रात वो पल
मेरी नींदे चुराते हैं।
हर दिन तनहाइयों में
आंसुओं का सावन बरसातें हैं ।
कभी मेरे लबों को छू कर
अजीब सी प्यास जगतें हैं,
तो कभी सीने से लग कर
मेरी बेताबी को और बढ़ा जातें हैं।


मेरे हमसफ़र !

तुम्हारी खिलखिलाहट के ताल पर
थिरकते वो पल...
तुम्हारी सांसों की खुशबु से
महकते वो पल...
तुम्हारे बाँहों के झूलों में
मचलते वो पल...
वो पल मुझे बहुत याद आते हैं।

अनुप्रिया...

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