शनिवार, 25 सितंबर 2010



आओ मेरे हमनवां !
मैं ले चलूँ तुम्हे वहां...
जहाँ हो
इतनी तन्हाई
कि हवा भी ना हो
तुम्हारे मेरे सिवा।
इतना प्यार
कि बस प्यार ही प्यार हो
तुम्हारे मेरे दरमियाँ।
इतनी ख़ामोशी
कि हम सुन सकें
बस धडकनों का बयाँ।
इतनी चाहत
कि मुझ से तुम तक
और तुमसे मुझ तक
ही सिमट जाये
हमारी हर दास्ताँ।
इतना विश्वास
कि आँखें बंद हो
और मैं ढूंढ़ लूँ
तुम्हारे दिल का रास्ता।
ऐसा जूनून
कि मैं भूल जाऊं जहाँ।
"मैं" मैं ना रहूँ
मुझमे भी बस
"तुम "ही "तुम "का
हो गुमा ।
तो चलें ... : )


अनुप्रिया.................

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