शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

tum mere liye bahot khas ho...

आज जो कह रही हूँ वो शब्द तो मेरे हैं पर अहसास किसी और के है. अरे! आप गलत समझ रहे हैं, वो अनपढ़ नहीं है, इंजिनियर है भाई...MNR ,इलाहाबाद, toper { (: with scholarship :) },लेकिन भावनाए व्यक्त करना इंजिनियरस के बस कि बात कहाँ.
ये जनाब मेरे 'वो' हैं, सोचा इनसे भी मिला दूँ...बताइयेगा जरुर, मुलाकात कैसी लगी?  :) :) :)


कैसे कहूँ ?
मुझे कहना नहीं आता,
तुम्हारी तरह
शब्दों से खेलना
नहीं आता.

पता नहीं
तुम कैसे देखती हो
काजल में 'बादल '
'सावन'में आँचल
हवा की ताल में
ढूंढ़ लेती हो
सीने की हलचल.

पूनम के 'चाँद' को
चेहरा कह देती हो,
'चांदनी' को बाँहों का
 घेरा कह देती हो .

सुबह की 'धूप' में
महसूस करती हो
 प्यार की गर्मी,
'ओस' की बूंद में
देख लेती हो
आँखों की नमीं.

उगता 'सूरज'
माथे पे सजा लेती हो,
'मौसम' को बालों का
गजरा बना लेती हो.

अजीब हो तुम,
ना जाने कैसे 
हर भाव गीतों में
पिरो देती हो,
दर्द हो या ख़ुशी
सब कुछ शब्दों में
संजो देती हो.

इसलिए शायद
मैं कहूँ ना कहूँ
तुम समझ  लेती हो
मेरा  मौन,
मेरे अहसास को,
इसलिए शायद 
बिना बताये भी 
जान लेती हो
कि तुम मेरे लिए
बहुत 'ख़ास' हो... 

अनुप्रिया...

सोमवार, 20 दिसंबर 2010



जाने दो , क्या हांसिल होगा अपने जख्म दिखाने  से,
हमको नहीं उम्मीद जरा भी इस बेदर्द ज़माने से.

जिसको हमने बचा  के रखा दुनिया भर की आफत से,
दिल भारी हो जाता है मुझ पर उसी के  पत्थर उठाने से.

दिल टुटा ,रिश्ते टूटे और टूटे ख्वाब ना जाने कितने,
बस हिम्मत की डोर ना टूटी वक़्त के ताने बाने से.

जब थी जरुरत कोई थामे, कोई अपना नहीं रहा,
हो गई है पहचान सभी की , बुरे वक़्त के आने से.

अब छोड़ो ये रोना धोना, बेमतलब के शिकवे गिले,
जीवन तो ख़त्म नहीं होता ना ,एक दो ख्वाब टूट जाने से.

अनुप्रिया...

(तस्वीर मेरे गाँव की है. गंगा के किनारे की सुबह...कितनी पवित्र कितनी सुरमई होती है ना...)

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

ek jindgi ki baat hai...gujar lene do.

बहका लो अपनी बाँहों में
कुछ ख्वाब सवार लेने दो,
एक जिन्दगी की बात है
गुजार लेने दो.

छू जो लिया तुमने  तो 
पूरी हो गई हूँ मैं,
इस अहसास को अब
रूह तक उतार लेने दो.


तुम्हारे अक्स में देखी है
मैंने खुदा की सूरत,
जी भर के मुझे चेहरा ये
निहार लेने दो.


अभी आये , अभी बैठे
अभी जाने की बात कर दी,
अरे ! सुकून से साँसे तो
दो-चार लेने दो.


फ़रिश्ते भी जिसे पाने को
आपना दीनो-इमां भूलें,
मेरे महबूब, मुझको तुमसे
वो प्यार लेने दो.


तुम्हारे नाम में जैसे बसी हो
सातों सुरों की सरगम,
हर शय को नाम अपना
पुकार लेने दो.


आखें तुम्हारी लगती हैं
मुक्कमल किताब जैसी,
गजलों को इनसे अपने 
अशआर लेने दो.


अनुप्रिया...

(अशआर:-
The form ghazal is a collection of mulitiple ashaar - each of which should convey a complete thought without any reference to other shayari of the same ghazal. In fact, though belonging to the same ghazal, the different ashaar therein can have completely different meaning and tone relative to one another.)

बुधवार, 8 दिसंबर 2010

tumhare liye...



कुछ  बात थी  तुम्हारी  बातों में,
बिन बात भी मुस्कुरा दिए,
तुम आ गए पहलु में जब
तो सारे दीये बुझा दिए.

तुम सामने बैठे थे जब,
आँखे हुई मेरी बेअदब,
टुक-टुक निहारती रही तुम्हे,
पल भर को भी ना झुकी पलक.

और आज बस तुम्हारे  जिक्र पर
  सुर्ख सी हो गई नज़र,
यूँ लाज से बेहाल थे,
आइना देख कर   सर झुका लिए...

अनुप्रिया...