गुरुवार, 23 सितंबर 2010




अश्क न जाने क्यों आखों में आते हैं,
दिल का हाल ज़माने से कह जाते हैं।


हाय ! दर्द से होंठ नहीं हिल पातें हैं,
पर आँखों में राज सभी छप जातें हैं।


लाखों आँखे तन्हाई में रोती हैं,
तब जा कर नमकीन समंदर बन पातें हैं।


अश्कों की भाषा थोड़ी हट कर है यारों,
कभी कभी तो खुशी में भी बह जातें हैं।


कोई इन आँखों को समझाए जरा,
हर बात पर सैलाब नए ये बनातें हैं।


अश्क ना जाने क्यों आँखों में आतें हैं,
दिल का हल ज़माने से कह जातें हैं...

अनुप्रिया ...

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