गुरुवार, 23 सितंबर 2010




शाम का आलम , भींगी पलकें ,तन्हाई,
और तुम्हारी याद।

दिल में गुजरे लम्हों की है परछाई,
और तुम्हारी याद।


जब जब दिल पर बांध सब्र का मैंने बनाया,
सागर के लहरों के जैसी उमड़ आई
और तुम्हारी याद।


जैसे जैसे दिन बढ़ते गए जुदाई के
जज्बातों को दर्द नए कुछ दे आई
और तुम्हारी याद।


हर एक पलक पर ख्वाब नए से सजे हुए हैं,
दूल्हा दुल्हन ,खुशियों का मौसम, शहनाई,
और तुम्हारी याद।


याद तुम्हारी और नहीं कुछ याद हमें,
भूलने की कोशिश में हरसू है आई
और तुम्हारी याद।

अनुप्रिया...

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

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  2. बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है

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