शनिवार, 23 अक्टूबर 2010


 हाय ! वो दो पल
ख़ामोशी ,तन्हाई
हवा में महकता
संदल...
वो उसका प्यार,
उसकी आँखें
चंचल - चंचल...
मैं ... शरमाई सकुचाई,
और मेरे ह्रदय के अन्दर
कसमसाती सी
हलचल...
मेरे हाथों पर उसके हाथ,
अजीब से हालत,
बहकते हुए अरमानों से
दिल ने कहा
संभल...
कि नहीं है ये तेरी मंजिल
उठ ! अब अपने रस्ते
निकल...

अनुप्रिया :) : ) :)

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहकना और संभलना दोनों आपको आता है यही है पहचान अच्छे इन्सान की, बहुत खूब

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  2. बहुत प्रेम से लिखी गई सुंदर रचना ,बधाई ।

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