गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

mera diwana ...




ना जाने उसने मुझमे ऐसा क्या देखा?
वो ज़माने भर को भूल बैठा है,
जब उससे नाम उसका पूछे कोई,
बड़ी ही भोलेपन से नाम मेरा कहता है.

कभी वो फूलों में तलाश मेरी करता है,
कभी पत्ते- पत्ते पे नाम मेरा लिखता है,
उससे पूछे कोई की चाँद कहाँ है?
हंस के चेहरा मेरा दिखा देता है.

उसके हर दिन, उसकी हर रात में मैं,
उसकी हर आती- जाती साँस में मैं,
उसकी रगों में लहू की जगह जैसे मैं ही हूँ,
उसके रूह के हर अहसास में मैं.

वो वो नहीं रहा अब यारों,
उसको देखूं तो मुझे खुद का गुमाँ होता है,
और फिर मैं सोंच में पड़ जाती हूँ,
कि आखिर उसने मुझमें देखा क्या है?

: )  :)  :)

अनुप्रिया...

1 टिप्पणी: