सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

जाने क्यों...



मोहब्बत   दिल में थी,
जाने क्यों जुबा पे लाई  ना गई.
हमसे कही ना गई,
तुमसे जताई  ना गई...

जो तुममें -मुझमें  था
वो हमसे  तो  पोशीदा रहा.
मगर वो बात
जमाने से ही छुपाई  ना गई...

सिलवटें गिनती रही
सारी रात बिस्तर की,
आग सीने की
किसी शय से बुझाई ना गई...

तुम्हारे प्यार में
इस बाँवरी ने क्या-क्या ना किया ?
हया की झीनी सी चादर ही      
मुझसे हटाई  ना गई...

एक जरा हाथ बढ़ाती  तो
प़ा लेती  तुमको,
हाय! वो दूरियां भी  मुझसे  
मिटाई ना गईं...

 

अनुप्रिया...






19 टिप्‍पणियां:

  1. नारी की लज्जा और हया का सुंदर और भाव पूर्ण वर्णन
    बसंत पंचमी की बहुत बहुत शुभकामनाए

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  2. वाह! क्या खूब चित्रण किया है।
    बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  3. वसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !
    कई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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  4. नारी मन का बेहतरीन चित्रण। ऐसे समय पर मुझे एक शेर याद आ रहा है,
    'मैं नहीं समझ पाया आज तक इस उलझन को,
    खून में हरारत थी या तेरी मुहब्‍बत थी।'

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  5. Man me lagan sachchi ho to dooriya
    mit hi jayengi.'Ja ka jahi pe satya snehu,taa use milahi na kachu sandhu'.bhav aur ras ki sunder abhivyakti ke liye shukriya.

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  6. अनुप्रिया जी , बहुत ही गहरा व प्यारा सा भाव लिये बेहतरीन नज़्म .......... . सुंदर प्रस्तुति.
    .
    सैनिक शिक्षा सबके लिये

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  7. सिलवटें गिनती रही
    सारी रात बिस्तर की
    आग सीने की
    किसी शय से बुझाई ना गयी
    बहुत कोमल भावों की मधुर-मधुर कविता

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  8. अनुप्रिया जी
    आपका गीत जानदार और शानदार है।
    प्रस्तुति हेतु आभार।
    =====================
    दर्द जब बेजुबान होता है।
    चित्त में इक उफान होता है॥
    प्यार को वो बुलंदी देता है-
    जो सतत सावधान होता है॥
    ===================
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी


    .

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  9. बहुत कोमल भावों की मधुर-मधुर कविता|

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  10. तुम्हारे प्यार में
    इस बाँवरी ने क्या-क्या ना किया ?
    हया की झीनी सी चादर ही
    मुझसे हटाई ना गई...

    आदरणीय अनुप्रिया जी
    प्यार भरे अहसासों की सुंदर कृति है आपकी यह रचना .....बहुत खूब

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  11. बहुत संजीदगी सी लिखी गयी रचना

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  12. अरे ये इश्क में ये 'जाने क्यों' शब्द का प्रयोग तो हर जगह ही होते रहता है,
    अच्छा हुआ की आपने बस एक ही जगह पुछा की -मोहब्बत दिल में थी,
    जाने क्यों जुबा पे लाई ना गई. :) :)

    वैसे सबसे खूबसूरत मुझे ये लगा
    सिलवटें गिनती रही
    सारी रात बिस्तर की,
    आग सीने की
    किसी शय से बुझाई ना गई... :)

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  13. कमाल की बात हो गयी है वैसे...कुछ दिनों पहले शिखा डी(शिखा वार्ष्णेय) ने भी इसी 'जाने क्यों' पे लिखा था, और मेरी एक मित्र ने भी अपनी पहली कविता मुझे मेल की थी..वो भी इसी पे..
    और तो और..मेरी बहन ने जो अपनी पहली कविता बहुत पहले लिखी थी उसका शीर्षक भी था 'जाने क्यों' :)

    इसे कहते हैं कमाल :)

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