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रविवार, 16 मई 2010

लव यू भाई...



सोचा न था
तुम यूँ चले जाओगे !
कुछ बिना कहे
बिना बताये...
ऐसे रूठ जाओगे....


सोचा न था
जिन्दगी  कैसी होगी
जब तुम न होगे...
हमारे लिए तो तुम
उतने ही सहज थे
जितनी हमारी सांसे...
सांसो के बिना भी जीना
कोई सोचता है भला...




तुम्हे पाया जबसे जन्मी थी मैं,
तुम्हारी हथेली पकड़ कर सिखा चलना मैंने,
तुम मेरे लिए उतने ही सहज थे
जितना सर के ऊपर आसमान
और पैरों  के नीचे  ये जमीन, 
बिना आसमान और जमीन के जीना
कोई सोचता है भला...


अब नहीं हो तुम
तो लगता है
बंद हो गई सांसे मेरी
बस ये शारीर है
यूँ ही अधर में फंसा  हुआ
जिसके सर पे
ऊपर न आसमान है,
और पावों के
नीचे ना जमीन ।

(अपने प्यारे भईया की याद में, जिन्हें इश्वर ने असमय ही हमसे छीन लिया )
अनुप्रिया...

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