ये जनाब मेरे 'वो' हैं, सोचा इनसे भी मिला दूँ...बताइयेगा जरुर, मुलाकात कैसी लगी? :) :) :)
कैसे कहूँ ?
मुझे कहना नहीं आता,
तुम्हारी तरह
शब्दों से खेलना
नहीं आता.
पता नहीं
तुम कैसे देखती हो
काजल में 'बादल '
'सावन'में आँचल
हवा की ताल में
ढूंढ़ लेती हो
सीने की हलचल.
पूनम के 'चाँद' को
चेहरा कह देती हो,
'चांदनी' को बाँहों का
घेरा कह देती हो .
सुबह की 'धूप' में
महसूस करती हो
प्यार की गर्मी,
'ओस' की बूंद में
देख लेती हो
आँखों की नमीं.
उगता 'सूरज'
माथे पे सजा लेती हो,
'मौसम' को बालों का
गजरा बना लेती हो.
अजीब हो तुम,
ना जाने कैसे
हर भाव गीतों में
पिरो देती हो,
दर्द हो या ख़ुशी
सब कुछ शब्दों में
संजो देती हो.
इसलिए शायद
मैं कहूँ ना कहूँ
तुम समझ लेती हो
मेरा मौन,
मेरे अहसास को,
इसलिए शायद
बिना बताये भी
जान लेती हो
कि तुम मेरे लिए
बहुत 'ख़ास' हो...
अनुप्रिया...