मेरे प्यारे पति देव को समर्पित, जिनके पास आज-कल मेरे लिए वक़्त ही नहीं है. :( :(:(
आइये जनाब, दो पल तो बैठिये पास में,
समझाएं कैसे , क्या मज़ा है प्यार के अहसास में.
जिन्दगी की कश्मकश में आप तो जीना ही भूले,
उलझने ही उलझने हैं आपके हर अल्फाज में.
सांसो की ये मोम तो हर पल यूँ ही पिघलती रहेगी,
देह मिट्टी से बनी जो ,धीरे -धीरे गलती रहेगी,
वक़्त बढ़ने से रहा, हाँ ! जरूरतें बढती रहेंगी.
क्यों प्रेम का रस खो रहे हैं , इस अमिट सी प्यास में.
हैं समंदर आप, समेटे हुए हजारों तिशनगी ,
मैं प्यार की मिठास लिए बह रही चंचल नदी,
दर्द ले लूँ आपका और मैं बाँट लूँ थोड़ी ख़ुशी,
आइये ! दो-चार लम्हें तो गुजारें साथ में...
अनुप्रिया...
6 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर भाव भरे हैं।
दर्द ले लूँ आपका और मैं बाँट लूँ थोड़ी ख़ुशी,
आइये ! दो-चार लम्हें तो गुजारें साथ में...
wah kya bat kahi aapne. bilkul pyar ke bhao se bhari hui kavita.........
अनु जी कविता बहुत अच्छी है , तारीफ करते है आपके लेखनी की लेकिन ज्यादा नहीं क्योकि रचना अन्तरंग है आपके पतिदेव की आपके प्रति तारीफ आपके लिए उचित प्रतिसाद होगी !
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
Girish jee...aapko bhi diwali ki bahot bahot badhaiya.
anupriya ji namskar...holi mubark...aapki ye kavita jab maine padhi to bhut vaa gai dil ko...bad me kucchh dino tk mere jubaa pe yhi lineye aa rahi thi'''aaiye janab ...do pal to baithiye paas me'''''....fir dubara padha maine isse...jitni baar padha utni baar ye dil me utarti chali gaiiiiiiiiii.....aaj fir maine padha....bhut sundar....
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