आँखें...शरीर का सबसे सुन्दर हिस्सा, मन का आइना, आत्मा की परछाई.
आज एक रचना उनकी खुबसूरत आँखों के लिए...
शोरो-गुल मच गया है दिल के नगर में,
मन के मौसम में फैली अजब सी खुमारी...एक नज़र में सुना डाली पूरी कहानी,
बहुत बोलती हैं ये आखें तुम्हारी.
कभी है ये चंचल, हो जैसे कोई झरना,
विरानो को छू कर सिखा दें सवारना,
इनकी गहराइयों में समंदर हो जैसे,
मुझको अच्छा लगे इनकी तह में उतरना.
कभी गीत कोई , कभी ये गजल हैं,
तुम्हारा चेहरा झील जैसा, ये आँखे कमल हैं,
सजदे में झुक जाऊं दिल मेरा चाहे,
ये आँखें तुम्हारी खुदा की शकल हैं.
ये आँखें तुम्हारी हैं जादू की पुडिया,
इशारों पे अपनी नचाती हैं दुनिया
उठती हैं पलके तो उगता है सूरज,
जो झुक जाएँ , आ जाये चंदा की बारी.
गुलाबी से अम्बर में काला सा बादल
समेटे हुए हैं काजल की धारी .
एक नज़र में सुना डाली पूरी कहानी,
बहुत बोलती हैं ये आँखें तुम्हारी...
अनुप्रिया...
16 टिप्पणियां:
अनुप्रिया जी आँखों पर बहुत ही सुंदर कविता..............सच आँखे सिर्फ सुंदर ही नहीं, अपनी सुन्दरता के साथ बहुत कुछ समेटे रहती है...........
.
नये दसक का नया भारत (भाग- १) : कैसे दूर हो बेरोजगारी ?
बहुत अच्छा
अनुप्रिया जी
नमस्कार !
गुलाबी से अम्बर में काला सा बादल
समेटे हुए हैं काजल की धारी .
एक नज़र में सुना डाली पूरी कहानी,
बहुत बोलती हैं ये आँखें तुम्हारी...
...कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
सच में आँखे बहुत कुछ कह जाती हैं , बहुत सुन्दर रचना|
अच्छा लिखा.good.
आँखों पर बहुत खूब नज़्म कही है आपने..........बहुत खूब
सुंदर रचना.... हर शब्द कुछ बोल रहा ..... भावपूर्ण
kya khubsurat aankhe aapne sabdo se chitrit kar diya...:)
ये आँखें तुम्हारी हैं जादू की पुडिया,
इशारों पे अपनी नाचती हैं दुनिया
उठती हैं पलके तो उगता है सूरज,
जो झुक जाएँ , आ जाये चंदा की बारी.
bahut pyari rachna........
कभी गीत कोई , कभी ये गजल हैं,
तुम्हारा चेहरा झील जैसा, ये आँखे कमल हैं,
सजदे में झुक जाऊं दिल मेरा चाहे,
ये आँखें तुम्हारी खुदा की शकल हैं.
अनुप्रिया जी
खूबसूरती को कितने खुबसूरत शब्दों इ अभिव्यक्त किया है आपने ....आपकी कविता रचनात्मकता का उत्कृष्ट नमूना है ..यूँ ही अनवरत लिखते रहें ....आपका आभार इस प्रस्तुति के लिए ...शुक्रिया
नेत्रों की बिभिन्न उपमाओ से सजी सुन्दर अभिव्यक्ति . कविता चित्ताकर्षक लगी . आभार .
mera hausla badhane ke liye aapka bahot bahot shukriya...
प्रिय अनुप्रिया जी
आदाब !
इस ख़ूबसूरत रचना के लिए कुछ कहने को सही शब्द मिल पाएंगे , इसमें संशय है ।
कभी गीत कोई , कभी ये ग़ज़ल हैं,
लगे झील चेहरा, ये आँखे कमल हैं,
मैं झुक जाऊं सजदे में दिल मेरा चाहे,
ये आँखें तुम्हारी ख़ुदा की शकल हैं.
वाह वाऽऽऽह ! पूरी रचना ऐसे सम्मोहित कर रही है … मन कह रहा है काश ! ये रचना मेरी हुई होती ।
अनुप्रिया जी सच तो ये है कि यह विषय मेरा ही है :) हुस्न की ता'रीफ़ में पुरुष लेखक ही तो आज़माइश किया करते हैं … आपने भी सौन्दर्य को सूक्ष्मदृष्टि से देखा , बहुत बहुत बधाई !
मेरा एक शे'र आपको नज़्र है -
गुलाबों - से मुअत्तर हों , हो जिनकी आब गौहर - सी
कहां से लफ़्ज़ वो लाऊं … तुम्हारी दास्तां लिखदूं
>~*~मकरसंक्रांति की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
निसंदेह ।
यह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
धन्यवाद ।
satguru-satykikhoj.blogspot.com
:)
गुलाबी से अम्बर में काला सा बादल
समेटे हुए हैं काजल की धारी .
एक नज़र में सुना डाली पूरी कहानी,
बहुत बोलती हैं ये आँखें तुम्हारी...
pankti pankti ati sundar.......abhar
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