उसे प्यार हो गया था...एक ऐसे लड़के से जिसने कभी उसकी तरफ देखा ही नहीं. शायद इस लिए कि रंग रूप में बड़ी साधारण थी वो. पर जिस तरह वो उसे चाहती थी वैसी चाहत ना मैंने देखी ना सुनी.
उस लड़की के इकतरफे प्यार की बेचैनी, उसकी तड़प को समझने की कोशिश करती एक रचना...
तुम्हारा ह्रदय
पत्थर की एक ऐसी गुफा है
जिसमे ना कोई खिड़की है
ना कोई झरोखा
और ना ही कोई दूसरा सुराख.
या फिर
वह शुन्य है
जिसमे ना प्यार है
ना नफरत
और ना ही कोई और अहसास.
या
एक ऐसी शिला
जो महसूस नहीं कर सकती,
ना धडकनों में उठती टीस,
ना प्रेम की प्यास.
आओ!
कभी झाँकों
मेरी आँखों में
और देखो ऐ पासान हृदयी,
तुम्हे पिघलाने के लिए
कितनी रातों तक
अविराम तनहा-तनहा
जलती रही है आँखें मेरी.
आओ !
कभी पूछो मेरी उदास शाम से,
तुम्हारी शुन्यात्मकता को
मधुर कोलाहल देने के लिए
खुद को किस तरह
तनहाइयों के अनंत शून्यों में
खो दिया है मैंने.
ना मैं मेनका हूँ
ना उर्वशी
और ना ही कोई और अदभुत सुंदरी,
तुम्हारे प्यार से शुरू हो कर
वही सिमट जाती है
मेरे परिचय की हर धुरी.
अब तुम्ही बताओ
कहाँ और कैसे जाऊं मैं
तुम्हारी आरजू छोड़ कर,
मेरी जिन्दगी का हर रास्ता
ला कर खड़ा कर देता है मुझे
तुम्हारी ही गली ,
तुम्हारे ही मोड़ पर.
पड़े हैं दर पे तेरे रख के दिल और जान हम सरकार,
कि सांसे टूटे उससे पहले मोहब्बत तेरी मिल जाये,
खुदा नाराज़ हो तो हो, मिटा दे हर निशा मेरा,
मगर मिट जाने से पहले एक झलक तेरी मिल जाये...
अनुप्रिया...
उस लड़की के इकतरफे प्यार की बेचैनी, उसकी तड़प को समझने की कोशिश करती एक रचना...
तुम्हारा ह्रदय
पत्थर की एक ऐसी गुफा है
जिसमे ना कोई खिड़की है
ना कोई झरोखा
और ना ही कोई दूसरा सुराख.
या फिर
वह शुन्य है
जिसमे ना प्यार है
ना नफरत
और ना ही कोई और अहसास.
या
एक ऐसी शिला
जो महसूस नहीं कर सकती,
ना धडकनों में उठती टीस,
ना प्रेम की प्यास.
आओ!
कभी झाँकों
मेरी आँखों में
और देखो ऐ पासान हृदयी,
तुम्हे पिघलाने के लिए
कितनी रातों तक
अविराम तनहा-तनहा
जलती रही है आँखें मेरी.
आओ !
कभी पूछो मेरी उदास शाम से,
तुम्हारी शुन्यात्मकता को
मधुर कोलाहल देने के लिए
खुद को किस तरह
तनहाइयों के अनंत शून्यों में
खो दिया है मैंने.
ना मैं मेनका हूँ
ना उर्वशी
और ना ही कोई और अदभुत सुंदरी,
तुम्हारे प्यार से शुरू हो कर
वही सिमट जाती है
मेरे परिचय की हर धुरी.
अब तुम्ही बताओ
कहाँ और कैसे जाऊं मैं
तुम्हारी आरजू छोड़ कर,
मेरी जिन्दगी का हर रास्ता
ला कर खड़ा कर देता है मुझे
तुम्हारी ही गली ,
तुम्हारे ही मोड़ पर.
पड़े हैं दर पे तेरे रख के दिल और जान हम सरकार,
कि सांसे टूटे उससे पहले मोहब्बत तेरी मिल जाये,
खुदा नाराज़ हो तो हो, मिटा दे हर निशा मेरा,
मगर मिट जाने से पहले एक झलक तेरी मिल जाये...
अनुप्रिया...
5 टिप्पणियां:
ek aisi antrkatha jo shayad is generation mei shayad ubhar pati... kuch purana sa.. parantu bahut hi nagdik ka laga... b'fully bringing the inner emotions... shayd kaviakr naa ho tho ahsaso ko sabd dena muskil ho jaye... gr8
:) आज कल टिप्पणियों से ज्यादा ब्लॉग पढने में समय दे रहा हूँ....
बहुत खूब....
बहुत ही गहरे एहसास है कविता में... सुंदर प्रस्तुति
अनु जी बहुत सुंदर भाव प्यार में पत्थर को पिघलाने की अच्छी आकांक्षा लिए भाव
नव वर्ष की आपको बहुत बहुत बधाई हो
anu priya ji kya likhti ho aap..hr kabita itni lajbab hoti h ki baar baar padhne ko dil krta hai...bhut sundrta se aapne u ldki ke pyr ko ukera hai...very nice
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