L

L

रविवार, 20 फ़रवरी 2011

पुरानी डायरी का एक पन्ना...

आज पुरानी डायरी में बरसों पुराना ख्वाब मिला. एक शाम घर कि छत पर बैठी सूर्यास्त देख रही थी. मुझे सूर्योदय और सूर्यास्त देखना बेहद पसंद है. आसमान के बदलते रंगों में जैसे जीवन की सारी उर्जा संचित होती है. १८ -१९ साल की उम्र थी तो कल्पनाएँ और सपने भी सूरज की लालिमा की तरह ही सुर्ख थे. उस दिन आसमान को निहारते हुए ये चंद पंगतियाँ लिखी थी मैंने.
चलिए आज आपसे इन्ही को बांटूं...काव्य के दृष्टिकोण से ये कैसी हैं ये बता पाने जितनी काबिलियत तो नहीं मुझमें, पर दिल के बेहद करीब है ये छोटे-छोटे सपने... 


 


जब संध्या का गुलाबी आँचल
अम्बर के सीने पर लहराता है
और सूर्य आकाश  सुंदरी के माथे पर
बिंदिया बन कर चमचमाता  है...
तब,
मैं अपनी तन्हाई में
प्रकृति के उस नयनाविराम
सौंदर्य को अपलक निहारा करती हूँ...
और,
सोचती हूँ कि
काश मैं भी आकाश सुंदरी सी होती,
मेरे भी तन पर सुर्ख गुलाब सा आँचल थिरकता,
और कोई सूर्य
मेरे भी माथे पर
दमकती  बिंदिया बन कर
मेरी गोरी काया को
नया आकर्षण प्रदान करता,
मुझे भी संसार उसी प्रशंसनीय नज़र से निहारता
जैसे
मैं अपनी तन्हाई में प्रकृति के उस
नयनाविराम सौन्दर्य को अपलक निहारा  करती हूँ....

अनुप्रिया...

                                                                          

17 टिप्‍पणियां:

Atul Shrivastava ने कहा…

वाह आकाश और सूर्य के रिश्‍तों का सुंदर वर्णन। अच्‍छी कल्‍पना।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

man ko chhoo gai kavita

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

प्रकृति से खुद को जोड़ना ..और उस सौंदर्य को निहारना ..अद्भुत अभिव्यक्ति है .

आशुतोष की कलम ने कहा…

कविता सुन्दर है..
बीच की पंक्तियों में नायिका के आकाश सुन्दरी होने की अतृप्त इच्छा महसूस होती है.
सुन्दर रचना के लिए बधाइयाँ

Rakesh Kumar ने कहा…

Aapka man jab prakrati se tadroop
ho jaye,to aise roop ka bhi anubhav
mil jata hai jaisa aapne apni kavita me ati sunder roop se abhivyakt kiya."aham
brahmaasmi" bhi to vedo ki sunder parikalpana hai jisse swayam me hi
iswar ke 'sat-chit-aanand' roop ke darsan ka anubhav hota hai.Aapki kavita se aapke pavitra
man ke sunder bhavo ka darsan karke ati prasannta mili..

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..मन को गहराई तक छू जाती है..

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

wah!
prakriti se judkar rachna bahut hi bhavpoorn evam manmohak ho gayi...
aabhar.

kavita verma ने कहा…

sunder dikhane aur prakriti se ghulmil jane ki ek masoom si chah...

संतोष पाण्डेय ने कहा…

काश मैं भी आकाश सुंदरी सी होती.
अकसर हमारी ख्वाहिशे हमें खुद से दूर कर देती हैं और सम्राट होने के बावजूद हम भिखारी बने रहते है.
सुन्दर कविता.

अजय कुमार ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्ति

udaya veer singh ने कहा…

itani sahjata se komal bhavnaon ka
samvahan man ko chhuta hai .sacha prayas kavya ki dristi se .sabhar.

vandana gupta ने कहा…

भावों का सुन्दर संगम्…………मनभावन रचना।

राज शिवम ने कहा…

बहुत ही खुबसुरत प्रस्तुति......

Patali-The-Village ने कहा…

वाह!अद्भुत अभिव्यक्ति है|धन्यवाद|

abhi ने कहा…

सूर्यास्त..आकाश और आप :)
वाह :)

'साहिल' ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता!

mridula pradhan ने कहा…

bahut khoobsurat hai aapki purani dayari ka ek panna.....