आज से ठीक १ साल पहले हमने उन्हें खो दिया...अजीब बात ये है कि जिस वक़्त वो जीवन और मृत्यु की लड़ाई लड़ रहे थे, ठीक उसी वक़्त मैं उनसे दूर बैठी अपना ब्लॉग अकाउंट बना रही थी...आने वाली दुर्घटना से अनजान मैं, अनजाने में ही अपने लिए वो मंच तैयार कर रही थी जिसने दुःख, अवसाद, और अकेलेपन के इस एक साल में मुझे सबसे ज्यादा संभाला...
मेरा ब्लॉग पढने वाले और समर्थन करने वाले अजनबी मित्रों को मेरा बहुत- बहुत धन्यवाद.
वो मेरे दोस्त , दुश्मन भी (क्यों कि हम एक दुसरे से जिस तरह लड़ते थे वैसे दुश्मन ही लड़ा करते हैं) ,गुरु भी(चलने से ले कर पढने तक, सब उन्होंने ही सिखाया यहाँ तक कि जीवन का उद्देश्य साधना भी उनसे ही सिखा मैंने) , आलोचक भी( मेरी कोई गलती उनकी नज़र से ओझल नहीं थी और न ही वो उसे बक्शते थे,तुरंत आलोचना करते थे) , पता नहीं और न जाने क्या-क्या थे? हाँ !पर उनके रहते कभी ये अहसास नहीं था कि अगर कभी वो न हुए तो मैं जीना भूल जाउंगी. मैंने बचपन से ले कर आज तक हजारों बार उनसे ये कहा कि मैं उनसे बहुत प्यार करती हूँ पर ये नहीं कहा कि भाई! मैं आपसे इतना प्यार करती हूँ कि अगर आप कभी नहीं रहे तो मैं जिन्दा लाश बन जाउंगी...आप मुझे छोड़ के कभी मत जाना.
काश कह दिया होता ...तो शायद...
मैं जब से इस दुनिया को जानती हूँ, मेरे लिए सूरज, चाँद, आसमान और धरती ,और आस पास कि बाकी चीजों कि तरह वो भी सहज थे. मैंने कभी सोचा ही नहीं कि वो नहीं होंगे...और मैं ...
हे इश्वर ! उनकी आत्माँ को शांति देना, अपने ह्रदय में स्थान देना...उनसे कहना कि हम सब उनसे बहुत प्यार करते हैं, और जाने- अनजाने अगर हमसे कोई भूल हुई हो तो वो हम सब को छमा कर दें.
(आज मैं कुछ भी सोच समझ कर नहीं लिख रही...जो भावनाएं लिखवा रही हैं बस वो लिखती जा रही हूँ, सो, त्रुटियों के लिए खेद है.)
उस कयामत की शाम को
जिन्दगी हुई हमसे खफा...
रूह के हर जर्रे में
दर्द जैसे घुल गया...
घर की चौखट लाँघ कर
खुशियाँ गई शमशान को...
बूढी हड्डी ने दिया कन्धा
अपने अरमान को...
वो, वंश का जो मान था,
मृत्यु कि गोद में सो गया...
सौभाग्य रूठ कर हमारा
काल के गाल में खो गया...
चूड़ियाँ टूट कर, ह्रदय की
फर्श पर बिखरी हुई थीं ,
घर की शोभा बेवा हो कर
आँखों के आगे खड़ी थी...
माँ की चुप्पी में
सुनाई दे रहा चीत्कार था,
खो गया वो
जो उसके अस्तिव का आधार था...
अपनी कहूँ क्या ,मैं तो उसका
हिस्सा थी ,परछाई थी...
उसका जाना मुझसे मेरी
आप से ही विदाई थी...
आंसुओं के कई समंदर
एक पल में पीना
क्या होता है...
हमसे पूछो दोस्तों
मर- मर के जीना
क्या होता है...
(in loving memory of my elder brother manuj kehari ,21 .9 . 1976 -26 .3 .2010 )
मेरा ब्लॉग पढने वाले और समर्थन करने वाले अजनबी मित्रों को मेरा बहुत- बहुत धन्यवाद.
वो मेरे दोस्त , दुश्मन भी (क्यों कि हम एक दुसरे से जिस तरह लड़ते थे वैसे दुश्मन ही लड़ा करते हैं) ,गुरु भी(चलने से ले कर पढने तक, सब उन्होंने ही सिखाया यहाँ तक कि जीवन का उद्देश्य साधना भी उनसे ही सिखा मैंने) , आलोचक भी( मेरी कोई गलती उनकी नज़र से ओझल नहीं थी और न ही वो उसे बक्शते थे,तुरंत आलोचना करते थे) , पता नहीं और न जाने क्या-क्या थे? हाँ !पर उनके रहते कभी ये अहसास नहीं था कि अगर कभी वो न हुए तो मैं जीना भूल जाउंगी. मैंने बचपन से ले कर आज तक हजारों बार उनसे ये कहा कि मैं उनसे बहुत प्यार करती हूँ पर ये नहीं कहा कि भाई! मैं आपसे इतना प्यार करती हूँ कि अगर आप कभी नहीं रहे तो मैं जिन्दा लाश बन जाउंगी...आप मुझे छोड़ के कभी मत जाना.
काश कह दिया होता ...तो शायद...
मैं जब से इस दुनिया को जानती हूँ, मेरे लिए सूरज, चाँद, आसमान और धरती ,और आस पास कि बाकी चीजों कि तरह वो भी सहज थे. मैंने कभी सोचा ही नहीं कि वो नहीं होंगे...और मैं ...
हे इश्वर ! उनकी आत्माँ को शांति देना, अपने ह्रदय में स्थान देना...उनसे कहना कि हम सब उनसे बहुत प्यार करते हैं, और जाने- अनजाने अगर हमसे कोई भूल हुई हो तो वो हम सब को छमा कर दें.
(आज मैं कुछ भी सोच समझ कर नहीं लिख रही...जो भावनाएं लिखवा रही हैं बस वो लिखती जा रही हूँ, सो, त्रुटियों के लिए खेद है.)
उस कयामत की शाम को
जिन्दगी हुई हमसे खफा...
रूह के हर जर्रे में
दर्द जैसे घुल गया...
घर की चौखट लाँघ कर
खुशियाँ गई शमशान को...
बूढी हड्डी ने दिया कन्धा
अपने अरमान को...
वो, वंश का जो मान था,
मृत्यु कि गोद में सो गया...
सौभाग्य रूठ कर हमारा
काल के गाल में खो गया...
चूड़ियाँ टूट कर, ह्रदय की
फर्श पर बिखरी हुई थीं ,
घर की शोभा बेवा हो कर
आँखों के आगे खड़ी थी...
माँ की चुप्पी में
सुनाई दे रहा चीत्कार था,
खो गया वो
जो उसके अस्तिव का आधार था...
अपनी कहूँ क्या ,मैं तो उसका
हिस्सा थी ,परछाई थी...
उसका जाना मुझसे मेरी
आप से ही विदाई थी...
आंसुओं के कई समंदर
एक पल में पीना
क्या होता है...
हमसे पूछो दोस्तों
मर- मर के जीना
क्या होता है...
अनुप्रिया....
(in loving memory of my elder brother manuj kehari ,21 .9 . 1976 -26 .3 .2010 )
15 टिप्पणियां:
ओह , बहुत मार्मिक ...वो जानते होंगे कि उनकी बहन अनुप्रिया उन्हें बहुत प्यार करती है ...
सहज मन के भावों को उड़ेल दिया है .
अनुप्रिया , बहुत मार्मिक , इन्हीं हालात से हम भी गुजरे हैं , कितनी ही यादें किस कदर सताती हैं , शुक्र है आप के पास कलम जैसा माध्यम है अपना दुःख उड़ेंलने के लिए ..
बहुत मार्मिक...शब्दों में दर्द का प्रवाह आँखों को नम कर देता है..
आँखें नम हो गयी अनुप्रिया..... :(
आंसुओं के कई समंदर
एक पल में पीना
क्या होता है...
हमसे पूछो दोस्तों
मर- मर के जीना
क्या होता है...
malum hai anu malum hai... ishwar unki aatma ko shanti de
कुछ ज्यादा नहीं लिखूंगा..
संवेदना और मनुज जी की आत्मा के लिए शांति प्रार्थना ..
इन नाम आखों से उन्हें श्रद्धांजली...
anupriya ji...kucchh dino pahle jab main aapke post ko padh rahi thi to maine is post ko dekha tha lekin aapne syad kisi bajw se use delete kar dia tha....apno ki kamiyo ko bhara nhi ja skta...lekin dil ke jakhmo ko likh ke kam jarur kiya ja skta hai...aapke vhai ke bare me janke acchha nhi laga...ya u kahiye ki dil me ek dhukh sa hai...vagwan unki aatma ko santi de....
रिय अनु ,
मैं नहीं जानती तुम्हे पर बस इतना कहना है कि आज एक रिश्ता बन गया है ! मेरा तुम्हारा.. आंसुओं का रिश्ता है !
May his soul rest in peace !
हे ईश्वर, दुनिया की खुशियाँ इस प्यारी बच्ची के नाम कर दो ! Please !
And yes, I want to mention.. I have never seen such a beautiful name of a blog - 'LIFE'.
Simply full of life !
Accept the facts of life n move on..the world is waiting for u!
:(
no comment on this one!!
अनुप्रिया जी
सस्नेहाभिवादन !
भैया की पावन स्नेहिल स्मृतियों को अश्रुपूरित श्रद्धा सुमन !
अब संभालिए अपने को … प्लीज़ !
ऐसा कोई नहीं जिसे इस तरह की स्थिति से न गुज़रना पड़ा हो …
बड़े या छोटे , जो भी हों… … …
हमारे अपने हमारे लिए हमेशा महत्वपूर्ण ही तो होते हैं …
मैं 3 मार्च 1991 को ही अपने बाबूजी को खो चुका …
जीना पड़ता है …
ग़म को भुलाना पड़ता है
हंसना-गाना पड़ता है
…और सच मानें , हमारे जो प्रिय बिछ्ड़ चुके हैं , उनकी आत्मा को सबसे अधिक ख़ुशी
तब होती है , जब हम ख़ुश रहते हैं …
आप बहुत brave हैं …
अब आपकी नई पोस्ट की प्रतीक्षा है …
इतने-से आग्रह का तो हक़ है न हमारा ?
कलम हमारा साथी है , उसे मात्र अपने ग़म का भागीदार ही नहीं बनाना है …
औरों के लिए सुख और आनन्द रूपी सरस्वती का प्रसाद भी इसके जरिए आना आवश्यक है ।
इतने लंबे लेक्चर के लिए सॉरी …
पढ़ने के बाद मिटा दें …
बहुत बहुत शुभकामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार
* श्रीरामनवमी , वैशाखी और महावीर जयंती की शुभकामनाएं ! *
aapke bhaiya ki aatma ko shanti mile.....bhagwan se yahi prarthna hain humari....
aapke lekhni ki jitni taarif ki jaaye km hain....jab dard jubaan par aata hain to shayad aise hi nagame bante hain...
aapse seekhne ko milega...yahi aaha hain...take care
अनुप्रिया जी
आपकी नई पोस्ट की प्रतीक्षा है…
गणेश चतुर्थी सहित आने वाले पर्वों-त्यौंहारों के लिए ♥हार्दिक शुभकामनाएं!♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आँखें नम हैं...
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