मैं लिखती हूं ,तुम गा देना।
वो काव्य जो बहता है प्रतिक्षण
हम दोनों की आंखों में,
लयबद्ध भी होता रहता है
हौले- हौले से सांसों में,
मैं शब्दों में उसे पिरोती हूं
तुम सुर से उसे सजा देना।
मैं लिखती हूं , तुम गा देना।
हम दोनों की आंखों में,
लयबद्ध भी होता रहता है
हौले- हौले से सांसों में,
मैं शब्दों में उसे पिरोती हूं
तुम सुर से उसे सजा देना।
मैं लिखती हूं , तुम गा देना।
मैं अविरल चंचल सी सरिता,
तुम चिर - थिर - स्थिर सागर हो।
मैं कोरी डोरी कल्पना की,
तुम सच हो, फिर भी सुंदर हो।
उत्तर - दक्षिण का संगम ये
हो गया कैसे समझा देना।
मैं लिखती हूं तुम गा देना।
तुम चिर - थिर - स्थिर सागर हो।
मैं कोरी डोरी कल्पना की,
तुम सच हो, फिर भी सुंदर हो।
उत्तर - दक्षिण का संगम ये
हो गया कैसे समझा देना।
मैं लिखती हूं तुम गा देना।
तुमसे मिल कर मेरे प्रियतम
मेरी कविता को अर्थ मिला,
जी उठी पंक्तियां भावों में
हर मुक्तक को संदर्भ मिला।
\,मेरी प्राण हीन रचनाओं में तुम
जीवन का अलख जगा देना।
मैं लिखती हूं तुम गा देना।
मेरी कविता को अर्थ मिला,
जी उठी पंक्तियां भावों में
हर मुक्तक को संदर्भ मिला।
\,मेरी प्राण हीन रचनाओं में तुम
जीवन का अलख जगा देना।
मैं लिखती हूं तुम गा देना।
जीवन दो पल की बात प्रिय
छण भर में होगी रात प्रिय
जब देह चिता बन जाएगी
छूटेगा ये भी साथ प्रिय।
जब नाम हमारा कहे कोई
राधे - कृष्णा सा साथ कहे,
मैं हृदय - हृदय में बस जाऊं
तुम प्राण - प्राण महका देना।
मैं लिखती हूं तुम गा देना।
मैं लिखती हूं तुम गा देना।
छण भर में होगी रात प्रिय
जब देह चिता बन जाएगी
छूटेगा ये भी साथ प्रिय।
जब नाम हमारा कहे कोई
राधे - कृष्णा सा साथ कहे,
मैं हृदय - हृदय में बस जाऊं
तुम प्राण - प्राण महका देना।
मैं लिखती हूं तुम गा देना।
मैं लिखती हूं तुम गा देना।
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