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बुधवार, 3 अप्रैल 2019

कलम - स्याही

जरा सम्भाल कर कागज पे रखो
टुकड़ा स्याही का,
जज़्बात लिखना इतना भी आसान नहीं है।
तख्त पलट जाते हैं इनके इक इशारे पे,
फ़्जों से खेलना बच्चों वाला काम नहीं है।

ताक़त है तुममें हर पल नया इतिहास लिखने की,
जो कल स्वर्णिम बनाए ऐसी कहानी आज लिखने की,
दोहराए जवानी हर सदी में जोश से भर कर
ऐसे गीत लिखने की, ऐसे साज़ लिखने की।

हुनर ये सोच कर परमात्मा ने तुमको बक्शा है
कलम मायूस ना हो जाए ,समझ लो ये भी ज़िम्मा है।
मुनासिब जो नहीं इंसानियत के वास्ते देखो
तुम्हारी शायरी को उन हदों से दूर रहना है।

कवि की कल्पना का
हर पल नया आयाम लिखते हो,
मोहम्मद की कहानी तो कभी तुम राम लिखते हो।
स्याही ना छूये तो खुदा भी अनकहा रह जाएगा,
इसलिए कभी गीता
तो कभी कुरान लिखते हो।

लिखने का इल्म है तो  सुबह
तुम नई लिख दो,
पसीने से तपा दिन, शाम लेकिन सुरमई लिख दो।
हवा का एक झोंका नाम कर दो उन परिंदो के
किस्मत में जिनके पल भर का भी आराम नहीं है।

जरा सम्भाल कर कागज पे रखो
टुकड़ा स्याही का,
जज़्बात लिखना इतना भी आसान नहीं है।
तख्त पलट जाते हैं इनके इक इशारे पे,
लब्जो से खेलना बच्चों वाला काम नहीं है।

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