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बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

तू अगर मेरा हो जाए

लब्जों को क्या चाहिए
बस एक ख्याल
जिसे अपनी बाहों में समेट
वो मुक्कमल हो जाए।

मिटा के नामों- निशान
अपना वजूद, अपनी पहचान
नदी की हसरत यही है कि
वो समंदर में खो जाए।

समझाए दुनिया को भले
बना के वो बहाने सौ
दिल यही चाहता है
मेरी गलियों में वो रोज आए।

ये दुनिया भर की दौलत
साजो- सामान चीज ही क्या है
खुदा को छोड़ दू मै
तू अगर मेरा हो जाए।

गुरुवार, 17 जनवरी 2019

शाम होते ही मेरी बाहों में चले आना

तुम्हारे लम्हों से सदियों के बीच
के सफर में
वो जो सूकून के दो पल है ना
उसी में है मेरा आशियाना,
                               
हां! उसी चौक पे
जहां पेशानी पे तुम्हारे
शिकन आई थी ...
और तुम  बैठ गए थे थक कर...
याद है उसी वक्त किसी ने तुम्हे सहलाया था,
तुम्हारे गालों पे ढलकते आसुओं को पोंछ कर,
तुम्हे उम्मीद के कुछ फलसफे भी दे आया था।
तुम्हारी नींदों ने वही गिरा दिए थे
अपने टूटे हुए कुछ अधूरे से ख्वाब,
मैंने ही तो बड़ी शिद्दत से उन्हें उठाया था...
पहचाना ?

अपने सपनों के पंखों को फैला कर
आजाद परिंदो सा तुम उड़ों
समंदर की गहराई ,अनंत की ऊंचाई भी छू लो
अपनी इन ख्वाहिशों की धुन में लेकिन
अपने घर का पता तो मत भूलो...
अरे यार! तुम्हे चाहिए होगी ये दुनिया तमाम
मेरी तो दुनिया ही तुम हो...
सुनो!
गुजर जाए तुम्हारी सहर कहीं
पर शाम होते ही तुम
मेरी बाहों में चले आना

अनुप्रिया

मंगलवार, 8 जनवरी 2019

मै लिखती हूं तुम गा देना...

मैं लिखती हूं ,तुम गा देना।
                     वो काव्य जो बहता है प्रतिक्षण
                     हम दोनों की आंखों में,
                     लयबद्ध भी होता रहता है
                     हौले- हौले से सांसों में,
मैं शब्दों में उसे पिरोती हूं
तुम सुर से उसे सजा देना।
मैं लिखती हूं , तुम गा देना।
                     मैं अविरल चंचल सी सरिता,
                      तुम चिर - थिर - स्थिर सागर हो।
                      मैं कोरी डोरी कल्पना की,
                      तुम सच हो, फिर भी सुंदर हो।
उत्तर  - दक्षिण का संगम ये
हो गया कैसे समझा देना।
मैं लिखती हूं तुम गा देना।
                        तुमसे मिल कर मेरे प्रियतम
                         मेरी कविता को अर्थ मिला,
                         जी उठी पंक्तियां भावों में
                         हर मुक्तक को संदर्भ मिला।
\,मेरी प्राण हीन रचनाओं में तुम
जीवन का अलख जगा देना।
मैं लिखती हूं तुम गा देना।
                         जीवन दो पल की बात प्रिय
                          ण  भर में होगी रात प्रिय
                          जब देह चिता बन जाएगी
                           छूटेगा ये भी साथ प्रिय।
जब नाम हमारा कहे कोई
राधे - कृष्णा सा साथ कहे,
मैं हृदय - हृदय में बस जाऊं
तुम प्राण - प्राण महका देना।
                             मैं लिखती हूं तुम गा देना।
                              मैं लिखती हूं तुम गा देना।
                          
                      

बुधवार, 3 मई 2017



यहाँ गिरे तो उठने सा मजा है,
इश्क की गलियों में संभलना क्या है ।

डुबो के दर्द में वो सुकून दे गया,
मोहब्बत मर्ज है तो आखिर दवा क्या है ।

मिली नजर तो कहीं हम कहीं हमारा वजूद,
उनकी आँखे हैं या पैमाना भरा है।

एक अदद जिस्म और मेरे नाम के सिवा,
मेरे वजूद में अब मेरा बचा क्या है।

चंद साँसो का सफर बेवजह सा, बेमानी  सा,
जिंदगी प्यार के सिवा क्या है।

शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016

खुदा भी हंस पड़ा मेरे मोहब्बत के फ़साने पे,

हवा भी आज कानों में मेरी खिल्ली उड़ा गई।
दिन रात जागे हाय जिनके इन्तजार में
वो आये सामने जैसे ही हमको नींद आ गई।

कहानी ख़त्म हो जाती यहीं पर तो भी अच्छा था,
बताते शर्म आती है हमारा हाल ऐसा था,
वो कानो में सुनाते रह गए किस्सा मोहबत का,
हमारी आँख न खुली ,खुमारी ऐसी छा गई।

जुदाई कितनी भारी थी, कैसा बेदर्द आलम था,
तुम्हारे बिन तो हर मौसम यहाँ पतझर का मौसम था,
उन्हें हर दर्द अपना और हर आंसू दिखाना था,
आया होश भी कब , जब उन्हें वापस को जाना था।
फसाने दिल में रह गए, लबों पे आह आ गई ,
गए तुम क्या .तुम्हारे साथ मेरी हर अदा गई...


अनुप्रिया ...

शुक्रवार, 15 मार्च 2013















पाँव जैसे धरती,
सूरत अम्बर,
नन्ही  सी बिटिया
आई मेरे घर।

चिड़ियों सी चहके,
फूलों सी महके,
झूले झूला
सपनों पर।
प्यारी सी बिटिया
आई मेरे घर।

चीनी की बोरी  है ,
चंदा चकोरी है ,
मत देखो
लग जाएगी नज़र।
भोली सी बिटिया
आई मेरे घर।

मक्खन की मटकी ,
है रंगों की रंगोली,
रूनकी -झुनकी ,
रोली -पोली,
लगती है परियों सी सुन्दर।
दुलारी सी बिटिया
आई मेरे घर।


अनुप्रिया ...


सोमवार, 28 मार्च 2011

(in loving memory of my elder brother manuj kehari ,21 .9 . 1976 -26 .3 .2010 )

आज से ठीक १ साल पहले हमने उन्हें खो दिया...अजीब बात ये है कि जिस वक़्त वो जीवन और मृत्यु की लड़ाई लड़ रहे थे, ठीक उसी वक़्त मैं उनसे दूर बैठी अपना ब्लॉग अकाउंट बना रही थी...आने वाली दुर्घटना से अनजान मैं, अनजाने में ही अपने लिए वो मंच तैयार कर रही थी जिसने दुःख, अवसाद, और अकेलेपन के इस एक साल में मुझे सबसे ज्यादा संभाला...
मेरा ब्लॉग पढने वाले  और समर्थन करने वाले अजनबी मित्रों को मेरा बहुत- बहुत धन्यवाद.
वो मेरे दोस्त , दुश्मन भी (क्यों कि हम एक दुसरे से जिस तरह लड़ते थे वैसे दुश्मन ही लड़ा करते हैं)  ,गुरु भी(चलने से ले कर पढने तक, सब उन्होंने ही सिखाया यहाँ तक कि जीवन का उद्देश्य साधना भी उनसे ही सिखा मैंने) , आलोचक भी( मेरी कोई गलती उनकी नज़र से ओझल नहीं थी और न ही वो उसे बक्शते थे,तुरंत आलोचना करते थे) , पता नहीं और न जाने क्या-क्या  थे?  हाँ !पर उनके रहते कभी ये अहसास नहीं था कि अगर कभी वो न हुए तो मैं जीना भूल जाउंगी. मैंने बचपन से ले कर आज तक हजारों बार उनसे ये कहा कि मैं उनसे बहुत प्यार करती हूँ पर ये नहीं कहा कि भाई! मैं आपसे इतना प्यार करती हूँ कि अगर आप कभी नहीं रहे तो मैं जिन्दा लाश बन जाउंगी...आप मुझे छोड़ के कभी मत जाना.
काश कह दिया होता ...तो शायद...


 मैं जब से इस दुनिया को जानती हूँ, मेरे लिए सूरज, चाँद, आसमान और धरती ,और आस पास कि बाकी चीजों कि तरह वो भी सहज  थे. मैंने कभी सोचा ही नहीं कि वो नहीं होंगे...और मैं ...

 हे इश्वर ! उनकी आत्माँ को शांति देना, अपने ह्रदय में स्थान देना...उनसे कहना कि हम सब उनसे बहुत प्यार करते हैं, और जाने- अनजाने अगर हमसे कोई भूल हुई हो तो वो हम सब को छमा कर दें.

(आज मैं कुछ भी सोच समझ कर नहीं लिख रही...जो भावनाएं लिखवा रही हैं बस वो लिखती जा रही हूँ, सो, त्रुटियों के लिए खेद है.)



उस कयामत की शाम को

जिन्दगी हुई हमसे खफा...
रूह के हर जर्रे में
दर्द जैसे घुल गया...

घर की चौखट लाँघ कर
खुशियाँ गई शमशान को...
बूढी हड्डी ने दिया कन्धा
अपने अरमान को...

वो, वंश का जो मान था,
मृत्यु कि गोद में सो गया...
सौभाग्य रूठ कर हमारा
काल के गाल में खो गया...

चूड़ियाँ टूट कर, ह्रदय की
फर्श पर बिखरी हुई थीं ,
घर की शोभा बेवा हो कर
आँखों के आगे खड़ी थी...

माँ की चुप्पी में
सुनाई दे रहा चीत्कार था,
खो गया वो
जो उसके अस्तिव का आधार था...

अपनी कहूँ क्या ,मैं तो उसका
हिस्सा थी ,परछाई थी...
उसका जाना मुझसे मेरी
आप से ही विदाई थी...

आंसुओं के कई समंदर
एक पल में पीना
क्या होता है...
हमसे पूछो दोस्तों
मर- मर के जीना
क्या होता है...


अनुप्रिया....

(in  loving  memory of my elder brother manuj kehari  ,21  .9 . 1976 -26 .3 .2010  )