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रविवार, 24 अक्तूबर 2010



पत्थर को छू कर नीर बना दे,
रेशम को जंजीर बना दे,
रात की काली चादर पर भी
इन्द्रधनुषी  तस्वीर बना दे,
ऐसा जादूगर है ये प्रेम.


मरुस्थल में घास उगा दे,
मृत बदन में श्वास जगा दे,
जलते हुए अंगारों पर भी
ये गुलाब के फूल उगा दे,
अमृत का सागर है ये प्रेम.


विष को छू दे,अमृत हो जाए,
सन्नाटे हर्षित हो जाए,
एक बार जो ह्रदय से गुजरे,
सात जन्म सुरभित हो जाये,
पारस सा पत्थर है ये प्रेम...

अनुप्रिया...

2 टिप्‍पणियां:

माधव( Madhav) ने कहा…

nice

dipayan ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना । बधाई ।