
एक जमाना था दोस्तों , हम भी मोहब्बत में हुआ करते थे,
जमीं पर नहीं पावों को अम्बर पे रखा करते थे।
फूलों से भी बातें हो जाती थी कभी - कभी,
तितलियों से अपने अफसाने कहा करते थे।
जागती आँखों से भी कुछ ख्वाब सजा लेते थे,
हम बादलों पे उड़ता हुआ एक गाँव बना लेते थे।
दिन रात उससे मिलने कि दुवायें किया करते थे,
वो सामने आये तो अदा दो चार दिखा देते थे।
जो रूठे तो हर निशानी उसकी गंगा में बहा देते थे,
आया प्यार कभी तो खुदा उसको बना देते थे।
कभी सता कर खुश हुए तो कभी मना कर खुश हुए,
इश्क की हर अदा का हम खूब मज़ा लेते थे।
अब कहाँ वो दौर , वो मासूमियत भरी बातें,
बेख़ौफ़ ,बेपरवाह वो मस्ती कि सौगातें,
जिन्दगी को जब हम बेफिक्र जिया करते थे,
एक जमाना था दोस्तों, हम भी मोहब्बत में हुआ करते थे।
अनुप्रिया...
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