“Life is full of beauty. Notice it. Notice the bumble bee, the small child, and the smiling faces. Smell the rain, and feel the wind. Live your life to the fullest potential, and fight for your dreams.”
L
शनिवार, 25 सितंबर 2010
सौ साल जैसे जिन्दगी का पल में गुजर गया,
जब वो सलोना चेहरा आँखों में उतर गया।
जुबान खामोश हो गई, मेरी सांसे रुक गई,
कुछ यूँ मिली नज़र कि मेरी नज़र झुक गई,
धडकनों का काफिला पल भर को ठहर गया,
जब वो सलोना चेहरा आँखों में उतर गया।
एक मासूमियत थी चेहरे पर, जो दिल को छू गई,
एक भाषा थी वो ख़ामोशी , जो सब कुछ कह गई,
चुप चाप खड़ी देखती रह गई मैं उसे,
और वो ना जाने कैसे मेरा जीवन बदल गया...
अनुप्रिया...
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
ये दोष उम्र का है, या दोष तुम्हारे चेहरे का,
हमने न चाह कर भी जो तुम्हे बार बार देखा।
यूँ बहकती हुई नज़रों से हो गया प्यार अगर,
कभी सोचा है आगे हमारा क्या होगा ?
वो चंचल होंठ, वो मासूम सी ताकती आँखे,
फ़रिश्ता ही होगा,जो तुमसे नज़र चुरा लेगा।
चाँद में भी मेरे यार दाग होता है,
मान जाए उसे जो तुझमे दाग दिखा देगा।
अनुप्रिया...
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
रात में दिन कि सूरत है वो
उसकी गोरी काली आँखे,
मीठी मीठी प्यास जगती
हाय वो मतवाली आँखें।
चाँदी जैसा रूप सलोना,
उसका रंग है जैसे सोना,
अद्भुत सा सौन्दर्य जगाती
उस पर हीरे वाली आँखे।
हाय! मेरी नींद उड़ाए
उसके अधरों कि मुस्कान,
बंसी जैसी मीठी बोली
दिल में जगाएं सौ अरमान।
उस पर चित का चैन चुराएं
उसकी भोली भाली आँखें।
अनुप्रिया...
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
देखते है ख्वाब शायद लोग इसी वहम में,
हसीन इन ख्वाबों में कुछ तो सच्चाई होगी।
जो हो गये हैं बेवफा देखते ही देखते,
उनकी हरक़त में छुपी शायद कोई वफ़ा भी होगी।
आज दिल से निकलेगी देखना कोई प्यारी ग़ज़ल,
क्यों कि आज ही तो जिन्दगी से
मेरे प्यार कि विदाई होगी।
गर आज तुमने यार मेरे मिलने से इनकार किया
कल भला फिर कैसे तुम्हारी मेरी जुदाई होगी।
ये आज कैसे फट पड़ा गुब्बार सीने का,
जरुर आँखों को किसी ने तस्वीर उसकी दिखाई होगी।
इस लिए मैं नाम उसका जुबान पर लाती नहीं,
बेवजह जमाने में मेरे प्यार कि रुसवाई होगी।
आज जल रहा था दिल किसी का मेरी ही तरह,
उसके सीने में भी आग तुम्ही ने लगाईं होगी।
अनुप्रिया...
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
आओ मेरे हमनवां !
मैं ले चलूँ तुम्हे वहां...
जहाँ हो
इतनी तन्हाई
कि हवा भी ना हो
तुम्हारे मेरे सिवा।
इतना प्यार
कि बस प्यार ही प्यार हो
तुम्हारे मेरे दरमियाँ।
इतनी ख़ामोशी
कि हम सुन सकें
बस धडकनों का बयाँ।
इतनी चाहत
कि मुझ से तुम तक
और तुमसे मुझ तक
ही सिमट जाये
हमारी हर दास्ताँ।
इतना विश्वास
कि आँखें बंद हो
और मैं ढूंढ़ लूँ
तुम्हारे दिल का रास्ता।
ऐसा जूनून
कि मैं भूल जाऊं जहाँ।
"मैं" मैं ना रहूँ
मुझमे भी बस
"तुम "ही "तुम "का
हो गुमा ।
तो चलें ... : )
अनुप्रिया.................
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
शुक्रवार, 24 सितंबर 2010
एक चांदनी रात... कितना हसीं ख्वाब ...आये थे आप...
चांदनी रातों की रंगत समेटे
सितारों की चादर बदन पे लपेटे,
गुम सुम अकेले नदी के किनारे,
छुप छुप के जो मेरा चेहरा निहारे,
अगर तुम नहीं थे तो फिर कौन था वो ?
वो सपनों से सुंदर , सजीली निगाहें
वो संदल के जंगल सी फैली हुई बाहें,
वसंती पवन सी वो चंचल निगाहें,
वो मुरली सी बोली थी किसकी बताओ ?
चलो ! माना झूठी हैं मेरी निगाहें,
तो फिर क्यों ये कहानी हवा गुनगुनाये,
ना पलकों की चिलमन में आँखें चुराओ ,
कैसी पहेली है कुछ तो बताओ ?
शरारत से ना देखो हमारी तरफ यूँ,
अगर इश्क है तो छुपाते हो तुम क्यों,
झूठी झिझक का ये पर्दा हटाओ,
तुम्हारी हूँ मैं , मुझको अपना बनाओ।
मुझे है यकीन वो तुम्ही थे ,तुम्ही थे,
मगर फिर भी एक बार सच सच बताओ ,
अगर तुम नहीं थे तो फिर कौन था वो।
अनुप्रिया...
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
सुना है वक़्त किसी के रोके कभी रुकता नहीं,
जो आज तक नहीं रुका किसी के सामने ,
उस आसमान को तेरे क़दमों में झुकते देखा है।
वो जिसका देख कर चेहरा दर्द भी हंस देता है,
उन बहारों को तेरे गम में सिसकते देखा है।
शायद ये बात सुन कर सभी दीवाना कहेंगे मुझे,
पर मैंने तेरे इशारों पर मौसम बदलते देखा है।
ये मेरे इश्क की इम्तहान नहीं तो और क्या है ,
जो मैंने तेरे वजूद में खुद को सिमटते देखा है।
शोला अगर जला दे तो सब यकीन भी कर लें,
मैंने तो शबनम से अपने दिल को जलते देखा है।
वो क्या हुआ था लब्जों में मैं कैसे बताऊँ?
मैं किस तरह इस बात का यकीन दिलाऊँ ?
मैं जानती हूँ दस्तूर नहीं है ये जहाँ का,
ये माना की आज तक ये कभी नहीं हुआ।
मुझे पता है मेरे महबूब तु इंसा है खुदा नहीं,
पर जो देखा है मैंने वो भी कोई ख्वाब मेरा नहीं।
जुबान बोलना चाहें फिर भी कह नहीं पाती,
की मैंने तेरी चाहत में क्या - क्या गुजरते देखा है ।
अनुप्रिया...
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
गुरुवार, 23 सितंबर 2010
एक कवि की प्रियतमा ...
चंचल आँखें , गोरा रंग,
चांदनी छलकता अंग अंग ,
ऐ काश कि मुझको मिल जाये
ऐसी ही प्रियतमा का संग।
होटों पर हो गुलाब की लाली,
वो चले तो झूमे डाली डाली,
हो उसपे आशिक ऋतुराज बसंत ,
ऐ काश कि मुझको मिल जाये
ऐसी ही प्रियतमा का संग।
वो सावित्री और सीता हो,
और प्रेम की बहती सरिता हो,
बातों से छलके प्रेम तरंग,
ऐ काश कि मुझको मिल जाये
ऐसी ही प्रियतमा का संग।
आँखों में भाव तरलता हो,
हर अदा में एक सरलता हो,
हो चित्त में शर्म की कम्पन ,
ऐ काश कि मुझको मिल जाये
ऐसी ही प्रियतमा का संग .
वो अनसुनी सी एक कहानी हो,
गंगा सा निर्मल पानी हो,
फुर्सत के छन में रची हुई
वो इश्वर का हो एक सृजन ,
ऐ काश कि मुझको मिल जाये
ऐसी ही प्रियतमा का संग।
अनुप्रिया...
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
उफ़ तेरी ये सुर्ख , गुस्से से भरी खामोश आँखें,
लगा दे आग पानी में ऐसी जलती हुई सांसें ,
नफरत में अदा है ये तो फिर वो प्यार क्या होगा,
अगर इनकार ऐसा है तो फिर इकरार क्या होगा ?
यूँ तो हमारी जिन्दगी से गुजरे कितने काफिले,
पर हम वहीँ पर रुक गए जिस मोड़ पर तुमसे मिले,
उम्र भर जलते रहेंगे क्या इन्तजार की आग में,
उलझन में है हम ए दिले बेक़रार क्या होगा ?
जिद है तुम्हारी ,तुम नहीं आओगे हमारी जिन्दगी में,लो आज खाते हैं कसम हम भी तुम्हारी आशकी में,
तुम मिलोगे हमसे ,या फिर हम मिलेंगे मौत से,
देखना है ऐ मेरे दिलदार , क्या होगा ?
अनुप्रिया...
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
दिल में धड़कन की जगह अब तेरे अरमान हैं,
मेरे होठों पर सजी जो वो तेरी मुस्कान है।
मेरी आँखों में जो सपना है , अमानत है तेरी,
मैं कहाँ हूँ खुबसूरत , वो तो मोहब्बत है तेरी।
सांसो में है तेरी खुश्बू , जिस्म में अहसास है,
दूर तू है मुझसे कितना, फिर भी लगता पास है।
मंजिलें तूहमसफ़र तू , और तू ही रहगुजर है ,
हाय ! कितना खुबसूरत मेरे जीवन का सफ़र है...
अनुप्रिया...
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
काश कभी ऐसा हो जाता,
तुम सामने मेरे बैठे होते,
हाथों में ले कर हाथ को मेरे,
तुम कुछ कहते, हम कुछ कहते।
अनजानी सुनसान डगर हो,
ख़ामोशी का हरसू असर हो,
बहकी बहकी तुम्हारी आँखे,
झुकी झुकी सी मेरी नज़र हो,
ऐसे में हम कैसे कह सुन पाते,
कानो में हमारे जो तुम कहते।
होता कभी जो ऐसा आलम ,
हम तुम और तन्हाई का मौसम,
सोंच के बढ़ जाती है धड़कन,
तुम क्या कहते, हम क्या कहते।
ऐसा होता ,वैसा होता,
जाने कैसा कैसा होता,
जज्बातों का बन जाता समंदर,
जब तुम ये कहते ,हम वो कहते...
अनुप्रिया...
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
कहो कैसे मैं भूल जाऊं तुम्हें,
दर्दे दिल भी तुम , और दावा भी तुम।
सुलग रहे हो कहीं सीने में चिंगारी से,
बह रहे हो वहीँ बन के हवा भी तुम।
कर दिया खुद ही जहाँ में मुझको बेपर्दा,
छुप गए आँचल में फिर बन के हया भी तुम।
पहले तो लबों को आह तक भरने ना दिया,
बह गए आँखों से फिर बन के दर्दे दास्ताँ भी तुम।
ना जाने कौन सी रस्में मोहब्बत तुमने निभाई,
ना बने बेवफा और ना ही वफ़ा ही तुम।
खैर जाने दो करें क्या तुमसे शिकायतें,
जब करम भी तुम ही हो और सजा भी तुम।
तोड़ दिए हर रिश्ते यही सोंच कर मैंने ,
हमदर्द भी अब तुम ही हो, दर्देआशना भी तुम...
अनुप्रिया...
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
अश्क न जाने क्यों आखों में आते हैं,
दिल का हाल ज़माने से कह जाते हैं।
हाय ! दर्द से होंठ नहीं हिल पातें हैं,
पर आँखों में राज सभी छप जातें हैं।
लाखों आँखे तन्हाई में रोती हैं,
तब जा कर नमकीन समंदर बन पातें हैं।
अश्कों की भाषा थोड़ी हट कर है यारों,
कभी कभी तो खुशी में भी बह जातें हैं।
कोई इन आँखों को समझाए जरा,
हर बात पर सैलाब नए ये बनातें हैं।
अश्क ना जाने क्यों आँखों में आतें हैं,
दिल का हल ज़माने से कह जातें हैं...
अनुप्रिया ...
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
शाम का आलम , भींगी पलकें ,तन्हाई,
और तुम्हारी याद।
दिल में गुजरे लम्हों की है परछाई,
और तुम्हारी याद।
जब जब दिल पर बांध सब्र का मैंने बनाया,
सागर के लहरों के जैसी उमड़ आई
और तुम्हारी याद।
जैसे जैसे दिन बढ़ते गए जुदाई के
जज्बातों को दर्द नए कुछ दे आई
और तुम्हारी याद।
हर एक पलक पर ख्वाब नए से सजे हुए हैं,
दूल्हा दुल्हन ,खुशियों का मौसम, शहनाई,
और तुम्हारी याद।
याद तुम्हारी और नहीं कुछ याद हमें,
भूलने की कोशिश में हरसू है आई
और तुम्हारी याद।
अनुप्रिया...
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
कुछ अनसुनी सी दास्ताँ
सुना रही है आज हवा,
दिल का शायद हाल तुम्हारे
बता रही है आज हवा।
आई हो जैसे छू कर तुमको
तुम्हारे शहर से अभी अभी,
इस तरह तुम्हारी ख़ुशबू से
नहा रही है आज हवा।
कभी उड़ा देती हैं जुल्फें,
कभी हिलाएं आँचल को,
तुम सी सारी अदाएं मुझको
दिखा रही है आज हवा।
दूरियां तो हैं हमारे
जिस्म की मजबूरियां ,
देखो कैसे दो दिलों को
मिला रही है आज हवा।
कह रही है एक दिन
सिमट जायेंगे ये भी फासले,
मुझको, मेरी तन्हाई को
समझा रही है आज हवा।
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
हर चेहरा मुझसे पूछता है
तुम हो कहाँ ?
हर नज़र ढूढती है मेरे आस पास
तुम्हारे निशान।
हर दरख़्त जैसे जानता हो अपनी कहानी,
हर शाख को हो जैसे पता
ये दास्ताँ।
कल शाम उड़ती एक चिड़िया ने कहा
चाँद , सूरज ,फूल ,भवरे ,और हवा,
सबके साथी ,और तुम तनहा !
उदास दिन हैं , उदास रातें,
उदास है मेरा जहाँ,
तुम हो कहाँ ?
अनुप्रिया ...
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
मेरे हमसफ़र!
तुम्हारे प्यार के आगोश में खोये हुए
जो दिन गुजर गए ,
उसके हर पल ना जाने कब
मेरी आँखों में ठहर गए।
अब हर रात वो पल
मेरी नींदे चुराते हैं।
हर दिन तनहाइयों में
आंसुओं का सावन बरसातें हैं ।
कभी मेरे लबों को छू कर
अजीब सी प्यास जगतें हैं,
तो कभी सीने से लग कर
मेरी बेताबी को और बढ़ा जातें हैं।
मेरे हमसफ़र !
तुम्हारी खिलखिलाहट के ताल पर
थिरकते वो पल...
तुम्हारी सांसों की खुशबु से
महकते वो पल...
तुम्हारे बाँहों के झूलों में
मचलते वो पल...
वो पल मुझे बहुत याद आते हैं।
अनुप्रिया...
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
बुधवार, 22 सितंबर 2010
आज न्यूज़ में सुना मैंने
एक मासूम लड़की की दास्ताँ,
रोती हुई बता रही थी
गई रात क्या हुआ ।
किस तरह बचपन को उसके
वासना में रौंद कर
उसके ही चाचा ने
उसकी मासूमियत का शिकार किया।
घर में सब हैरान थे,
ऐसा भी होता है भला !
और आपस में दुहाई
दे रहे थे नैतिक मूल्यों का।
मैं मगर चुप चाप
टीवी को निहारे जा रही थी,
उसके आंसू अपनी आँखों
में उतारे जा रही थी।
ऐसा लग रहा था है वो
मेरे अतीत का आइना,
जो कुछ भी वो कह रही थी
साथ मेरे हो चूका।
आज तक जो चुभ रहा वो
दर्द मैंने भी सहा है,
धीरे धीरे दिल का हर एक
जख्म ताजा हो रहा है।
ना जाने कितनी रातें गुजरी
आंसूं भरी आँख में,
पर किसी से कह ना पाई
हाय ! मन की बात मैं।
जिस कहानी पर हैरत है सबको
हाँ उसे मैं जी चुकी हूँ
अपमान का ये घूंट मई भी
बालपन में पी चुकी हूँ।
और मैं ही क्यों ,
यहाँ अनगिनत हैं और भी
जिनकी इज्जत और अस्मत
अपने ही घर में लुटी।
है अजब ये बात बेटी
अपने घर का मान है,
और घर ही में उसका
लुट रहा सम्मान है।
अभी इन बातों में उलझी
ही हुई थी मैं तभी,
८ बजे शाम को
दरवाजे की घंटी बजी।
पापा ने खोला तो देखा
मेरे चाचा जी खड़े थे
उम्र और कद काठी में
वो मेरे पापा से बड़े थे।
सबने उठ कर बड़े अदब से
अपना अपना सर झुकाया
और बातों ही बातों में,
न्यूज़ का किस्सा सुनाया।
चाचा जी ने लाल हो कर
क्रोध में सबसे कहा ,
ऐसे पापी लोगों को वो
फांसी पर देते चढ़ा।
उनकी बातें सुन के जैसे
दिल में उठी टीस सी ,
और वहां से उठ के मैं
अपने कमरे में गई।
अपने वार्डरोब से निकाली
मैंने एक लम्बी सी रस्सी,
और ले जा कर के उसको
सामने उनके रक्खी ।
पहली बार मिला कर नज़र
उनकी नज़र से मैंने कहा,
एक फांसी का फन्दा
मान्यवर !आपके नाम भी...
आज जैसे मेरे बरसों की
तड़प को न्याय मिला,
मेरा मुजरिम सामने मेरे
खड़ा था सर झुका।
मेरा खोया विश्वास मुझको
आज वापस मिल गया,
उस मासूम लड़की ने दिखाई
हिम्मत जो ,उसका शुक्रिया।
अनुप्रिया...
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
मंगलवार, 14 सितंबर 2010
आज मैं उदास हूँ
और तुमसे क्या कहूँ।
सुस्त सी हैं धड़कने
रुकी रुकी सी साँस हूँ
और तुमसे क्या कहूँ।
आज इस मक़ाम पर
आदमी की बिसात क्या
खुदा से भी नाराज़ हूँ
और तुमसे क्या कहूँ।
कल की बात और थी
मेरे वजूद से थी रौशनी
अब बुझा हुआ चिराग हूँ
और तुमसे क्या कहूँ।
वक़्त की आंधी में
आँख से जो गिर गया
टुटा हुआ वो ख्वाब हूँ
और तुमसे क्या कहूँ।
खुशबु थी मैं, नशा थी मैं,
नजाकत थी मैं ,अदा थी मैं,
अब ढला हुआ शबाब हूँ
और तुमसे क्या कहूँ।
अनुप्रिया ...
Me, Anupriya, M.sc. with Botany and M.BA. with H.R.working as lecturer and love to write and read hindi poems...
सदस्यता लें
संदेश (Atom)