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शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

tum mere liye bahot khas ho...

आज जो कह रही हूँ वो शब्द तो मेरे हैं पर अहसास किसी और के है. अरे! आप गलत समझ रहे हैं, वो अनपढ़ नहीं है, इंजिनियर है भाई...MNR ,इलाहाबाद, toper { (: with scholarship :) },लेकिन भावनाए व्यक्त करना इंजिनियरस के बस कि बात कहाँ.
ये जनाब मेरे 'वो' हैं, सोचा इनसे भी मिला दूँ...बताइयेगा जरुर, मुलाकात कैसी लगी?  :) :) :)


कैसे कहूँ ?
मुझे कहना नहीं आता,
तुम्हारी तरह
शब्दों से खेलना
नहीं आता.

पता नहीं
तुम कैसे देखती हो
काजल में 'बादल '
'सावन'में आँचल
हवा की ताल में
ढूंढ़ लेती हो
सीने की हलचल.

पूनम के 'चाँद' को
चेहरा कह देती हो,
'चांदनी' को बाँहों का
 घेरा कह देती हो .

सुबह की 'धूप' में
महसूस करती हो
 प्यार की गर्मी,
'ओस' की बूंद में
देख लेती हो
आँखों की नमीं.

उगता 'सूरज'
माथे पे सजा लेती हो,
'मौसम' को बालों का
गजरा बना लेती हो.

अजीब हो तुम,
ना जाने कैसे 
हर भाव गीतों में
पिरो देती हो,
दर्द हो या ख़ुशी
सब कुछ शब्दों में
संजो देती हो.

इसलिए शायद
मैं कहूँ ना कहूँ
तुम समझ  लेती हो
मेरा  मौन,
मेरे अहसास को,
इसलिए शायद 
बिना बताये भी 
जान लेती हो
कि तुम मेरे लिए
बहुत 'ख़ास' हो... 

अनुप्रिया...

सोमवार, 20 दिसंबर 2010



जाने दो , क्या हांसिल होगा अपने जख्म दिखाने  से,
हमको नहीं उम्मीद जरा भी इस बेदर्द ज़माने से.

जिसको हमने बचा  के रखा दुनिया भर की आफत से,
दिल भारी हो जाता है मुझ पर उसी के  पत्थर उठाने से.

दिल टुटा ,रिश्ते टूटे और टूटे ख्वाब ना जाने कितने,
बस हिम्मत की डोर ना टूटी वक़्त के ताने बाने से.

जब थी जरुरत कोई थामे, कोई अपना नहीं रहा,
हो गई है पहचान सभी की , बुरे वक़्त के आने से.

अब छोड़ो ये रोना धोना, बेमतलब के शिकवे गिले,
जीवन तो ख़त्म नहीं होता ना ,एक दो ख्वाब टूट जाने से.

अनुप्रिया...

(तस्वीर मेरे गाँव की है. गंगा के किनारे की सुबह...कितनी पवित्र कितनी सुरमई होती है ना...)

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

ek jindgi ki baat hai...gujar lene do.

बहका लो अपनी बाँहों में
कुछ ख्वाब सवार लेने दो,
एक जिन्दगी की बात है
गुजार लेने दो.

छू जो लिया तुमने  तो 
पूरी हो गई हूँ मैं,
इस अहसास को अब
रूह तक उतार लेने दो.


तुम्हारे अक्स में देखी है
मैंने खुदा की सूरत,
जी भर के मुझे चेहरा ये
निहार लेने दो.


अभी आये , अभी बैठे
अभी जाने की बात कर दी,
अरे ! सुकून से साँसे तो
दो-चार लेने दो.


फ़रिश्ते भी जिसे पाने को
आपना दीनो-इमां भूलें,
मेरे महबूब, मुझको तुमसे
वो प्यार लेने दो.


तुम्हारे नाम में जैसे बसी हो
सातों सुरों की सरगम,
हर शय को नाम अपना
पुकार लेने दो.


आखें तुम्हारी लगती हैं
मुक्कमल किताब जैसी,
गजलों को इनसे अपने 
अशआर लेने दो.


अनुप्रिया...

(अशआर:-
The form ghazal is a collection of mulitiple ashaar - each of which should convey a complete thought without any reference to other shayari of the same ghazal. In fact, though belonging to the same ghazal, the different ashaar therein can have completely different meaning and tone relative to one another.)

बुधवार, 8 दिसंबर 2010

tumhare liye...



कुछ  बात थी  तुम्हारी  बातों में,
बिन बात भी मुस्कुरा दिए,
तुम आ गए पहलु में जब
तो सारे दीये बुझा दिए.

तुम सामने बैठे थे जब,
आँखे हुई मेरी बेअदब,
टुक-टुक निहारती रही तुम्हे,
पल भर को भी ना झुकी पलक.

और आज बस तुम्हारे  जिक्र पर
  सुर्ख सी हो गई नज़र,
यूँ लाज से बेहाल थे,
आइना देख कर   सर झुका लिए...

अनुप्रिया...

गुरुवार, 18 नवंबर 2010

living dreams.

मेरे साँस लेते सपनों से मिलिए...छोटे साहब का नाम है लव. ये मेरे भतीजे हैं और अभी सिर्फ दो साल के हैं.अभी ठीक से बोलना भी नहीं आता इन्हें पर सारा घर सर पे उठा कर रखते हैं. बड़े साहब  मेरे  सुपुत्र हैं ...इनका नाम क्यूटू   {ओमतनय } ,और ये अभी ६ साल के हैं और छोटे साहब के गुरु हैं...:)


नन्हे क़दमों की रुनझुन रुनझुन,
तोतली बोली की मीठी गुनगुन,
कृष्ण की बासुरी सा मन  सुकून देता है...
मेरी ममता का हसीं ख्वाब है तू,
जो हँसता है, सांस लेता है...

प्रेम की मिट्टी से बना है तू,
मेरे अरमानों से सना है तू,
अपने आशीष की छांव में रख कर
मैंने दुवाओं से तुझको सींचा है.


तुझसे मतलब है मेरे जीने का,
तू मेरी जिन्दगी का मकसद है...
तुझको छू भी ना पाए कोई गम
 खुदा से बस यही मिन्नत है.
मेरे बच्चे ! मासूमियत से अपने हर पल
मुझको तू मुस्कुराने की वजह देता है,
"माँ "कह के बुलाता है तू जब भी मुझको
 अहसास एक ख़ास  होता है.

अनुप्रिया...

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

socho to jara...



सोचो तो जरा
गर्मी की दुपहरी में
काले बादल छा जाएँ,
ठंढी बुँदे बरसायें,
सब कुछ भींगा-भींगा कर जाए.
सोंचो तो जरा
अमावस की रात में
चाँद निकल जाए,
शीतल चांदनी बरसाए,
घर- आँगन रौशन कर जाए.
सोंचो तो जरा
पतझर के मौसम में
वसंत इठलाये,
फूल खिलाये,
हर तरफ बहार आ जाये.
तुम कहोगे मैं पागल हूँ
पर ऐसा होता है
जब थकान से चूर होती हूँ मैं
और तुम मेरा पसीना पोछते हो
और चूम के माथा मेरा
मेरे अस्तित्व  को
भींगा देते हो.
हाँ! ऐसा होता है
जब उदासी की अमावस में भी
तुम चाँद सा मुस्कुराते हो,
अपनी खुशनुमा बातों की
चांदनी बिखराते हो,
और मुझे अन्दर तक
रौशन कर जाते हो.
हाँ! ऐसा होता है
जब जीवन की आप-धापी में
मुरझा जाती हूँ मैं
और तुम अपनी शरारती आँखों से
मेरे मन में अनगिनत
फूल खिलाते हो,
मेरा तन-मन महकाते हो.
हाँ! प्रीतम तुम्ही तो हो
मेरे जीवन में,
जो कभी सावन, तो कभी पूनम,
तो कभी वसंत बन जाते हो.

अनुप्रिया...

 




सोमवार, 8 नवंबर 2010

wirah...

विरह...

Girl Sitting Alone


तेरे जाने के बाद ओ साथी
पतझर का मौसम आया था,
मेरे ह्रदय के दीप्त व्योम पर
काला सा तम छाया था.

प्रीत की बोली गाने वाली
कोयल जाने कहाँ छुपी थी,
मीठी प्यास जगाने वाला
सावन भी अलसाया था.

सूनी सी थी मन की गलियां,
अनजानी लगती थी दुनिया,
सैकड़ों की भीड़ में मैंने
खुद तो तनहा पाया था.

तड़प-तड़प कर आँखें मेरी
तुझको ढूंढा करती थी,
व्याकुल हो कर इन होठों  ने
गीत विरह का गया था.

क्या बतलाऊं  कैसे बीते दिन,
कैसे बीता वह इक - इक पल,
शांत झील सा प्रतीत होता था
झरनों सा ये मन चंचल.

सपनों के रंगीन शहर में
विराना सा छाया था...
तेरे जाने के बाद ओ साथी
पतझर का मौसम आया था...

अनुप्रिया...

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

raat ka balidaan...

2 Dec.१९९७, मेरी एक प्यारी दोस्त जिसका नाम रजनी है, ने मुझे इस कविता को लिखने कि प्रेरणा दी थी . वो बड़ी ही कमाल की लड़की हुआ करती थी. बिना किसी शर्त सबकी मदद करना ,हमेशा खुश रहना. उसे इस बात से कभी फर्क नहीं पड़ा कि कोई उसके बारे में क्या कहता है ,या क्या सोचता है. बल्कि मैंने तो ये भी देखा है कि उसने वक़्त पड़ने पर उनकी भी वैसे ही मदद की जिन लोगों ने उसे कभी पसंद नहीं किया.

हम तीन दोस्त हुआ करते थे...मैं , रजनी,  और मोना. तीनों का स्वभाव तो अलग था पर चीजों को देखने का नजरिया एक ही था...रजनी में एक अदा थी...नजाकत थी, खूबसूरती थी, कुल मिला कर एक कविता का inspiration बनने लायक थी वो.एक दिन मैंने उससे पूछा ,यार ! तू इतनी प्यारी और सुन्दर है, तेरे माँ -पापा ने तेरा नाम रजनी(रात) क्यों रख्खा ? उसने मुस्कुराते हुए कहा ...रजनी ही तो दिन की जननी है...कभी सोचा है !रात के बिना दिन का अस्तित्व  ही क्या है ?  मैंने जब सोचा तो ये कविता बन गई...


 और मोना ! जी वो गदा थी :) जी हाँ, बात निकली नहीं कि वहीँ ख़त्म. 
आज पुराने दोस्तों को याद करने की दो वजह है...पहली तो ये कि आज मेरा जन्मदिन है और सुबह - सुबह  हमने फ़ोन पर  ढेरों  बातें की और गुजरे दिनों को याद किया. दूसरी वजह इस कविता का शीर्षक है जो दिवाली की पूर्व संध्या पर दिवाली की खुबसूरत रात को अर्पित करना चाहती हूँ.



जानती थी ,डूब जाएगी वो
सवेरे की पहली किरण जो खिले,
दे के रंगीन सपने फिर भी संसार को
रात बढती रही नई सुबह के लिए.

वो बढती रही बस इसी आस में,
जो सवेरा जगे तो जगेगा जहाँ,
खिलेगी कलि फिर नए रंग की,
नए ढंग से नाच उठेगा समां.

वो बढती रही मृत्यु की तरफ,
संसार को ताकि जीवन मिले,
यथार्थविभूषित हो सके कल्पना,
टूटती साँसों को नव यौवन मिले.

अगर रुक गई वह कहीं स्वार्थ में,
फिर काफिला जिन्दगी का बढेगा नहीं,
ना होगा सवेरा तो इतिहास में
नया पृष्ठ कोई जुड़ेगा नहीं...

 दिवाली   की ढेरों शुभ कामनाओं के साथ :) :):)
अनुप्रिया...

बुधवार, 3 नवंबर 2010

jindgi ki recipe

मैंने इन पंक्तियों को दो साल पहले एक फॅमिली गेट टू गेदर के दौरान अपने दोस्तों के request  पर खाना खाते हुए ५ मिनट के अन्दर रची थी...उन्हें तो पसंद आई...अब जरा आप भी चख कर बताइए, कैसी लगी आपको...जिन्दगी की अनोखी रेसिपी.




एक किलो सुरमई सुबह में
एक चम्मच मुस्कराहट,
एक रत्ती जिन्दादिली और
एक चुटकी ली शरारत...


विश्वास की हांड़ी में भर के
प्यार के ढक्कन से ढँक दी,
सोच की कलछी से हिला कर
जोश के चूल्हे पे रख दी ..


कुछ देर जब पक गई...
डाली इसमें अपनी ताजगी...
दोस्तों.!जरा चख कर बताना
मेरी अनोखी जिन्दगी...

अनुप्रिया...

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

aaiye janab....do pal to baithiye paas me...

मेरे प्यारे पति देव को समर्पित, जिनके पास आज-कल मेरे लिए वक़्त ही नहीं है. :( :(:( 

 आइये जनाब, दो पल तो बैठिये पास में,
समझाएं कैसे , क्या मज़ा है प्यार के अहसास में.
जिन्दगी की कश्मकश में आप तो जीना ही भूले,
उलझने ही उलझने हैं आपके हर अल्फाज में.


सांसो की ये मोम  तो हर पल यूँ ही पिघलती रहेगी,
देह मिट्टी से बनी जो ,धीरे -धीरे गलती रहेगी,
वक़्त बढ़ने से रहा, हाँ ! जरूरतें बढती रहेंगी.
क्यों प्रेम का रस खो रहे हैं , इस अमिट सी  प्यास में.

हैं समंदर आप, समेटे हुए  हजारों  तिशनगी ,
मैं प्यार की मिठास लिए बह रही चंचल नदी,
दर्द ले लूँ  आपका और मैं बाँट लूँ थोड़ी ख़ुशी,
आइये ! दो-चार लम्हें तो गुजारें साथ में... 

अनुप्रिया...












 

रविवार, 31 अक्टूबर 2010

aaiye jhake meri subah me...

जी...आइये झांकते हैं मेरी आज की सुबह में...मेरी सुबह में खास ये है कि इसमें कुछ भी खास नहीं है.ये भी आप सब की सुबह से मिलती जुलती ही है, लेकिन ये  मुझे हमेशा याद रहेगी . क्यों...ये सब आप सब की सोहबत का असर है. जी हाँ...आज की सुबह पतिदेव से बातें करते वक़्त शब्द इतने लयबद्ध थे कि जनाब ने मुस्कुराते हुए कहा, मैडम! कभी तो अपने ब्लोगर  अकाउंट से साइन आउट हो जाइए. 
ये  कविता कैसी है ,ये तो आप बताएँगे, हाँ ! पर मेरे लिए मजेदार ज़रूर है.



लो...८ बज गए हैं,
अभी तक नींद फरमा रहे हो ?
इस लिए तो आज कल 
रोज़ लेट हो जा रहे हो. 

उफ़, अभी तक ब्रश  नहीं किया ?
बाथरूम में देखो तो
गीजर ऑन है क्या ?
मैं कुछ कह रही हूँ...
और तुम पेपर पढ़े जा रहे हो.

अरे ! ये भींगा हुआ तौलिया ?
इसे बिस्तर पर ही फैला दिया ?
गीले-गीले पैरों से
घर को भी भींगा रहे हो...

वहीँ तो रखी है मेज पर
तुम्हारी हर चीज़,
तुम्हारा पर्स, फाइलें,
और वो रही तुम्हारी सफ़ेद कमीज़.
बस सताने के लिए
बार-बार बुला रहे हो.

नाश्ता टेबल पे रख दिया है ,
मेथी का पराठा आज बना है.
दोपहर को क्या बनाऊं ?
सुनो ! लंच पर तो आ रहे हो ?

चलो, अब जाओ भी,
ये लो मोबाईल, चार्जर,
और गाड़ी कि चाभी.
खाने पर वक़्त से आना...
अरे...ऐसे क्यों मुस्कुरा रहे हो ?

अनुप्रिया...

शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

ek maasum khwaab...



ये पंगतियाँ  मैंने तब लिखी थी जब मई १८ साल की  थी. नए नए सपने, एक अलग ही दुनिया थी वो... अचानक आज  पुरानी डायरी मिल गई. लगा जैसे खुद से बरसों बाद मिल रही हूँ. कुछ हँसते हुए पल मिले ,तो कुछ शरारत भरे अंदाज. सोचा ये भी बाँट लूँ आपसे.  इससे पहले भी इस डायरी से कुछ खुबसूरत  हुए लम्हे बाटें है आपसे जिसे आपने पसंद भी किया. अब तो जीवन पर हादसों की ऐसी परत चढ़ गई है कि शब्द मुस्कुराना ही भूल गए हैं. थोड़ी ख़ुशी अतीत से ही चुरा लूँ तो क्या बुरा है.

मेरी जिन्दगी का एक नया अध्याय ,
एक नई तन्हाई ,एक नया इन्तजार,
एक नए दर्द का अहसास,
एक अनजानी सी प्यास.

हर पल राहों पे अटकी आँखें ,
थमी-थमी आहिस्ता चलती सांसें,

एक अनसुना स्वर,
एक अनदेखी नज़र.

अब स्मरण नहीं आता कोई पहचाना चेहरा,
हर पल है आँखों के सामने
वही नया अनजाना चेहरा.

सोचती हूँ, क्या उसे भी इस दर्द का अहसास होगा?
मैं तो उसके यादों के समंदर में खोई रहती हूँ,
क्या मेरी यादों का  एक कतरा भी उसके पास होगा ?

फूलों के बीच से छुपता - निकलता वो
हर शाम चुपके से आ कर,
अपने खामोश लबों से
मेरे कानों में कुछ कह जाता है,
ऐसा लगता है , हर रास्ते, हर नुक्कड़ से
वो मुझे लगातार, अपलक निहारा करता है.

मैंने भी कई बार (सपनों में ),
उसकी मुस्कान की कोमलता को
अपने होठों पर सवारा है,
उसके झील से शांत व्यक्तित्व को
अपने ह्रदय की गहराई में उतारा है.

मैं नहीं जानती
इस अध्याय का क्या अंत  होगा ?
मेरी कल्पना  में  बसा ये चेहरा 
क्या कभी जीवंत  जीवंत होगा ?

मेरे नादान कदम 
एक अनजाने रस्ते  पर निकल पड़े हैं
सिर्फ तुम्हारे भरोसे,
मेरे सपनों में आने वाले  ऐ  मेरे हमसफ़र !
जीवन की अनजान  राहों पर
क्या तुम  मेरा साथ दोगे ? 

( इत्फाक से जीवन में कभी-  कभी सपने पूरे भी हो जाते है. इस कविता को लिखने के लगभग २ साल बाद मेरी शादी हो गई...मेरे सपनों के राज कुमार के साथ... : ) : ) : )

 अनुप्रिया...

गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

mera diwana ...




ना जाने उसने मुझमे ऐसा क्या देखा?
वो ज़माने भर को भूल बैठा है,
जब उससे नाम उसका पूछे कोई,
बड़ी ही भोलेपन से नाम मेरा कहता है.

कभी वो फूलों में तलाश मेरी करता है,
कभी पत्ते- पत्ते पे नाम मेरा लिखता है,
उससे पूछे कोई की चाँद कहाँ है?
हंस के चेहरा मेरा दिखा देता है.

उसके हर दिन, उसकी हर रात में मैं,
उसकी हर आती- जाती साँस में मैं,
उसकी रगों में लहू की जगह जैसे मैं ही हूँ,
उसके रूह के हर अहसास में मैं.

वो वो नहीं रहा अब यारों,
उसको देखूं तो मुझे खुद का गुमाँ होता है,
और फिर मैं सोंच में पड़ जाती हूँ,
कि आखिर उसने मुझमें देखा क्या है?

: )  :)  :)

अनुप्रिया...

बुधवार, 27 अक्टूबर 2010



खुद  को भुला दे अगर कोई सूरत,
तो हम उसको क्या नाम दें?
धडकनों से भी ज्यादा हो किसी की जरुरत ,
तो हम उसको क्या नाम दें?

जन्नत से ज्यादा हो जो खुबसूरत,
तो हम उसको क्या नाम दें ?
पल पल पे हो जाए उसी की हुकूमत,
तो हम उसको क्या नाम दे ?

अगर ख्वाब बन  जाये कोई हकीक़त,
तो हम उसको क्या नाम दें ?
हंसी लगने लगे जो किसी की शरारत ,
तो हम उसको क्या नाम दें?

कलियाँ चुराएँ जिसकी मुस्कराहट,
तो हम उसको क्या नाम दें?
सर से पांव  तलक  जो हो कोई कयामत,
तो हम उसको क्या नाम दें?

शायद दुआ मेरी कुछ काम दे दे,
सोचते हैं खुदा को ही पैगाम दे दे,
उसी ने तराशा ये फरिश्तों सा चेहरा,
कि जिसने बनाया वही नाम दे दे .
: ) :) :)
अनुप्रिया...

मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010

A life in depression

 A life in depression







एक जीवन,
दर्द की परिभाषा,
टूटती हुई आशा,
सिसकती हुई मुस्कराहट,
कराहता हुआ यौवन
एक जीवन.

एक जीवन,
बिखरते हुए सपने,
बिछड़ते हुए अपने,
शुन्य होती भावनाएं,
सुखा हुआ सावन,
एक जीवन.

एक जीवन,
पथराई हुई आँखें,
जलती हुई सांसें,
सुस्त होता हुआ व्यक्तित्व,
मानवता का पतन,
एक जीवन.

एक जीवन ,
चढ़ता हुआ तूफ़ान,
डूबता हुआ विहान,
सजा-धजा अस्मशान,
मृत्यु का आगमन,
हाय जीवन, हाय जीवन, हाय जीवन!

अनुप्रिया...


आप चले गए जो हमारी जिन्दगी से,

टूट जायेगा रिश्ता हमारा हर ख़ुशी से।


प्यार थोड़ा सा , मिले थोड़ा भरोसा,
और चाहिए क्या आदमी को आदमी से।


अश्क रुक रुक कर सही पर बहते रहे,
भूल कर भी भूले नहीं दिन बेबसी के .

हाथ पर जब हाथ आपका था हमारे,
वो भी क्या दिन थे हमारी बेखुदी के।

हर एक झरोखे में आप ही का गुमा हुआ
जब भी गुजरे हम आपकी गली से।

साथ बस आपका मिले हर एक कदम को,
और चाहिए क्या हमें इस जिन्दगी से।

अनुप्रिया...

सोमवार, 25 अक्टूबर 2010



जाने भी दो यारों!
अब क्या गिला करें.
अपने दिल का हाल अब
किससे बयाँ करें.


इंसान में इंसानियत का
जब नामों निशान नहीं,
किस यकीन से हम बुत को
अपना खुदा कहें.

दोस्तों कि शक्ल में
है दुश्मन छुपे पड़े,
अब सोच में हैं कि
दोस्तों को क्या कहा करें.

वो क़त्ल करने पर तुले हैं
जो थे हमारी जिन्दगी ,
किस` दिल से अब हम उनको
 जाने वफ़ा  कहें.

अनुप्रिया...

muskurana badi baat hai...


 मुस्कुराना बड़ी बात है.

जिन्दगी की उधेड़बुन से
कौन बच पाया यहाँ...
दर्द चाहे जितना बड़ा हो
हंस के झेल जाना बड़ी बात है...


जीवन के इस अनोखे सफ़र में
साथ किसका उम्र  भर   का,
आधे रस्ते चलते चलते
हाथ छुटा हमसफ़र का,
क्या शिकायत वो अगर
साथ चल पाया नहीं,
दो चार कदम ही सही
साथ निभाना बड़ी बात है...

है अनिश्चित जितना जीवन,
उतनी ही निश्चित मृत्यु है,
ऐ मेरे मन "उनके" जाने से
भला विचलित क्यों तू है?
छोटी सही इस जिन्दगी को ,
जी जाना बड़ी बात है.

अनुप्रिया...

 

रविवार, 24 अक्टूबर 2010



पत्थर को छू कर नीर बना दे,
रेशम को जंजीर बना दे,
रात की काली चादर पर भी
इन्द्रधनुषी  तस्वीर बना दे,
ऐसा जादूगर है ये प्रेम.


मरुस्थल में घास उगा दे,
मृत बदन में श्वास जगा दे,
जलते हुए अंगारों पर भी
ये गुलाब के फूल उगा दे,
अमृत का सागर है ये प्रेम.


विष को छू दे,अमृत हो जाए,
सन्नाटे हर्षित हो जाए,
एक बार जो ह्रदय से गुजरे,
सात जन्म सुरभित हो जाये,
पारस सा पत्थर है ये प्रेम...

अनुप्रिया...



एक अजीब सी चाहत है.
कि खो जाए मेरे भीतर का "मैं".
"मैं" जो प्रेरित करता है 
अहंकार को, क्रोध को,
स्वार्थ को और" मैं "के सुख को .
"मैं " जो दबा देता है
समाज की संभावनाओं को,
"हम" के विकास को , 
देश के दुःख को.
"मैं " जो भूल जाता है
कि संसार में आये हर जीव की भांति
वो भी नश्वर है.
कुछ कृतियाँ बना कर ,
कुछ सफलताएँ प् कर
समझने लगता है कि
वो ही इश्वर है.
"मैं " जो जन्म देता है
कुप्रथाओं को, कुसंस्कार को
और मार देता है
 मनुष्य के भीतर की
मनुष्यता को, प्यार को.
"मैं " जिसके पास नहीं होता
"मैं " के सिवा कोई अहसास ,
"मैं " जो सुन सकता है
सिर्फ "मैं " की आवाज.
इस लिए तो भीड़ में भी रह कर
रह जाता है अकेला
आदमी के अन्दर का "मैं "
शायद इसलिए चाहती हूँ
कि खो जाये
मेरे भीतर का "मैं"
ताकि  मैं जी पाऊ "हम" बन कर.
मेरे दर्द के सिवा और भी
कुछ दर्द हो मेरे अन्दर.
मेरी हंसी के साथ
हँसे कुछ और होंठ भी ,
दूसरों के आंसू भी निकले
मेरी आँखों से
मेरे आंसू बन कर.
ताकि  मैं ना डरूँ
सिर्फ मैं के अहित से
देश और समाज बड़ा हो
मेरे हित से.
ताकि मैं समझ पाऊं कि 
इस संसार में सिर्फ एक मैं है...इश्वर ,
इस लिए चाहती हूँ कि खो जाये वो "मैं"
जो है मेरे भीतर...


अनुप्रिया...

शनिवार, 23 अक्टूबर 2010


 हाय ! वो दो पल
ख़ामोशी ,तन्हाई
हवा में महकता
संदल...
वो उसका प्यार,
उसकी आँखें
चंचल - चंचल...
मैं ... शरमाई सकुचाई,
और मेरे ह्रदय के अन्दर
कसमसाती सी
हलचल...
मेरे हाथों पर उसके हाथ,
अजीब से हालत,
बहकते हुए अरमानों से
दिल ने कहा
संभल...
कि नहीं है ये तेरी मंजिल
उठ ! अब अपने रस्ते
निकल...

अनुप्रिया :) : ) :)


क्यों मैं जाऊं काबा काशी ,
क्यों जाऊं गुरुद्वारा,
मेरा तीर्थ वहीँ हो जाए
जहाँ हो साथ तुम्हारा.


साथ तुम्हारा हो तो हर सुख,
वरना सब बेकार ,
सात जन्म के पुण्य के फल में
मिला तुम्हारा प्यार.


मिला तुम्हारा प्यार तो दुनिया
लगती कितनी सुन्दर,
सात आसमान दिल में तुम्हारे
आँखों में सात समंदर .


सात रंग से रंग दिया तुमने
जीवन कोरा कोरा,
हर रात चांदनी हो गई मेरी,
दिन हो गया सुनहरा.


सात सुरों में ढली हुई सी
लगे तुम्हारी बातें,
क्या - क्या गिनवाऊं  मैं
तुमने क्या - क्या दी सौगातें.

अनुप्रिया...

बुधवार, 13 अक्टूबर 2010



एक जमाना था दोस्तों , हम भी मोहब्बत में हुआ करते थे,
जमीं पर नहीं पावों को अम्बर पे रखा करते थे।



फूलों से भी बातें हो जाती थी कभी - कभी,
तितलियों से अपने अफसाने कहा करते थे।


जागती आँखों से भी कुछ ख्वाब सजा लेते थे,
हम बादलों पे उड़ता हुआ एक गाँव बना लेते थे।


दिन रात उससे मिलने कि दुवायें किया करते थे,
वो सामने आये तो अदा दो चार दिखा देते थे।


जो रूठे तो हर निशानी उसकी गंगा में बहा देते थे,
आया प्यार कभी तो खुदा उसको बना देते थे।


कभी सता कर खुश हुए तो कभी मना कर खुश हुए,
इश्क की हर अदा का हम खूब मज़ा लेते थे।


अब कहाँ वो दौर , वो मासूमियत भरी बातें,
बेख़ौफ़ ,बेपरवाह वो मस्ती कि सौगातें,

जिन्दगी को जब हम बेफिक्र जिया करते थे,
एक जमाना था दोस्तों, हम भी मोहब्बत में हुआ करते थे।


अनुप्रिया...

शनिवार, 25 सितंबर 2010



सौ साल जैसे जिन्दगी का पल में गुजर गया,
जब वो सलोना चेहरा आँखों में उतर गया।


जुबान खामोश हो गई, मेरी सांसे रुक गई,
कुछ यूँ मिली नज़र कि मेरी नज़र झुक गई,

धडकनों का काफिला पल भर को ठहर गया,
जब वो सलोना चेहरा आँखों में उतर गया।


एक मासूमियत थी चेहरे पर, जो दिल को छू गई,
एक भाषा थी वो ख़ामोशी , जो सब कुछ कह गई,

चुप चाप खड़ी देखती रह गई मैं उसे,
और वो ना जाने कैसे मेरा जीवन बदल गया...

अनुप्रिया...
Tiny Red Roses Pretty


ये दोष उम्र का है, या दोष तुम्हारे चेहरे का,
हमने न चाह कर भी जो तुम्हे बार बार देखा।

यूँ बहकती हुई नज़रों से हो गया प्यार अगर,
कभी सोचा है आगे हमारा क्या होगा ?

वो चंचल होंठ, वो मासूम सी ताकती आँखे,
फ़रिश्ता ही होगा,जो तुमसे नज़र चुरा लेगा।

चाँद में भी मेरे यार दाग होता है,
मान जाए उसे जो तुझमे दाग दिखा देगा।

अनुप्रिया...


रात में दिन कि सूरत है वो
उसकी गोरी काली आँखे,
मीठी मीठी प्यास जगती
हाय वो मतवाली आँखें।


चाँदी जैसा रूप सलोना,
उसका रंग है जैसे सोना,
अद्भुत सा सौन्दर्य जगाती
उस पर हीरे वाली आँखे।


हाय! मेरी नींद उड़ाए
उसके अधरों कि मुस्कान,
बंसी जैसी मीठी बोली
दिल में जगाएं सौ अरमान।
उस पर चित का चैन चुराएं
उसकी भोली भाली आँखें।



अनुप्रिया...



देखते है ख्वाब शायद लोग इसी वहम में,
हसीन इन ख्वाबों में कुछ तो सच्चाई होगी।


जो हो गये हैं बेवफा देखते ही देखते,
उनकी हरक़त में छुपी शायद कोई वफ़ा भी होगी।


आज दिल से निकलेगी देखना कोई प्यारी ग़ज़ल,
क्यों कि आज ही तो जिन्दगी से
मेरे प्यार कि विदाई होगी।


गर आज तुमने यार मेरे मिलने से इनकार किया
कल भला फिर कैसे तुम्हारी मेरी जुदाई होगी।


ये आज कैसे फट पड़ा गुब्बार सीने का,
जरुर आँखों को किसी ने तस्वीर उसकी दिखाई होगी।


इस लिए मैं नाम उसका जुबान पर लाती नहीं,
बेवजह जमाने में मेरे प्यार कि रुसवाई होगी।


आज जल रहा था दिल किसी का मेरी ही तरह,
उसके सीने में भी आग तुम्ही ने लगाईं होगी।

अनुप्रिया...


आओ मेरे हमनवां !
मैं ले चलूँ तुम्हे वहां...
जहाँ हो
इतनी तन्हाई
कि हवा भी ना हो
तुम्हारे मेरे सिवा।
इतना प्यार
कि बस प्यार ही प्यार हो
तुम्हारे मेरे दरमियाँ।
इतनी ख़ामोशी
कि हम सुन सकें
बस धडकनों का बयाँ।
इतनी चाहत
कि मुझ से तुम तक
और तुमसे मुझ तक
ही सिमट जाये
हमारी हर दास्ताँ।
इतना विश्वास
कि आँखें बंद हो
और मैं ढूंढ़ लूँ
तुम्हारे दिल का रास्ता।
ऐसा जूनून
कि मैं भूल जाऊं जहाँ।
"मैं" मैं ना रहूँ
मुझमे भी बस
"तुम "ही "तुम "का
हो गुमा ।
तो चलें ... : )


अनुप्रिया.................

शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

एक चांदनी रात... कितना हसीं ख्वाब ...आये थे आप...




चांदनी रातों की रंगत समेटे
सितारों की चादर बदन पे लपेटे,
गुम सुम अकेले नदी के किनारे,
छुप छुप के जो मेरा चेहरा निहारे,
अगर तुम नहीं थे तो फिर कौन था वो ?


वो सपनों से सुंदर , सजीली निगाहें
वो संदल के जंगल सी फैली हुई बाहें,
वसंती पवन सी वो चंचल निगाहें,
वो मुरली सी बोली थी किसकी बताओ ?


चलो ! माना झूठी हैं मेरी निगाहें,
तो फिर क्यों ये कहानी हवा गुनगुनाये,
ना पलकों की चिलमन में आँखें चुराओ ,
कैसी पहेली है कुछ तो बताओ ?


शरारत से ना देखो हमारी तरफ यूँ,
अगर इश्क है तो छुपाते हो तुम क्यों,
झूठी झिझक का ये पर्दा हटाओ,
तुम्हारी हूँ मैं , मुझको अपना बनाओ।


मुझे है यकीन वो तुम्ही थे ,तुम्ही थे,
मगर फिर भी एक बार सच सच बताओ ,
अगर तुम नहीं थे तो फिर कौन था वो।

अनुप्रिया...



सुना है वक़्त किसी के रोके कभी रुकता नहीं,
मैंने तेरे प्यार में डूबा हर लम्हा रकते देखा है


जो आज तक नहीं रुका किसी के सामने ,
उस आसमान को तेरे क़दमों में झुकते देखा है


वो जिसका देख कर चेहरा दर्द भी हंस देता है,
उन बहारों को तेरे गम में सिसकते देखा है


शायद ये बात सुन कर सभी दीवाना कहेंगे मुझे,
पर मैंने तेरे इशारों पर मौसम बदलते देखा है


ये मेरे इश्क की इम्तहान नहीं तो और क्या है ,
जो मैंने तेरे वजूद में खुद को सिमटते देखा है


शोला अगर जला दे तो सब यकीन भी कर लें,
मैंने तो शबनम से अपने दिल को जलते देखा है


वो क्या हुआ था लब्जों में मैं कैसे बताऊँ?
मैं किस तरह इस बात का यकीन दिलाऊँ ?


मैं जानती हूँ दस्तूर नहीं है ये जहाँ का,
ये माना की आज तक ये कभी नहीं हुआ


मुझे पता है मेरे महबूब तु इंसा है खुदा नहीं,
पर जो देखा है मैंने वो भी कोई ख्वाब मेरा नहीं


जुबान बोलना चाहें फिर भी कह नहीं पाती,
की मैंने तेरी चाहत में क्या - क्या गुजरते देखा है


अनुप्रिया...

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

एक कवि की प्रियतमा ...



चंचल आँखें , गोरा रंग,
चांदनी छलकता अंग अंग ,
ऐ काश कि मुझको मिल जाये
ऐसी ही प्रियतमा का संग।


होटों पर हो गुलाब की लाली,
वो चले तो झूमे डाली डाली,
हो उसपे आशिक ऋतुराज बसंत ,
ऐ काश कि मुझको मिल जाये
ऐसी ही प्रियतमा का संग।


वो सावित्री और सीता हो,
और प्रेम की बहती सरिता हो,
बातों से छलके प्रेम तरंग,
ऐ काश कि मुझको मिल जाये
ऐसी ही प्रियतमा का संग।


आँखों में भाव तरलता हो,
हर अदा में एक सरलता हो,
हो चित्त में शर्म की कम्पन ,
ऐ काश कि मुझको मिल जाये
ऐसी ही प्रियतमा का संग .


वो अनसुनी सी एक कहानी हो,
गंगा सा निर्मल पानी हो,
फुर्सत के छन में रची हुई
वो इश्वर का हो एक सृजन ,
ऐ काश कि मुझको मिल जाये
ऐसी ही प्रियतमा का संग।

अनुप्रिया...



उफ़ तेरी ये सुर्ख , गुस्से से भरी खामोश आँखें,
लगा दे आग पानी में ऐसी जलती हुई सांसें ,
नफरत में अदा है ये तो फिर वो प्यार क्या होगा,
अगर इनकार ऐसा है तो फिर इकरार क्या होगा ?




यूँ तो हमारी जिन्दगी से गुजरे कितने काफिले,
पर हम वहीँ पर रुक गए जिस मोड़ पर तुमसे मिले,
उम्र भर जलते रहेंगे क्या इन्तजार की आग में,
उलझन में है हम ए दिले बेक़रार क्या होगा ?


जिद है तुम्हारी ,तुम नहीं आओगे हमारी जिन्दगी में,लो आज खाते हैं कसम हम भी तुम्हारी आशकी में,
तुम मिलोगे हमसे ,या फिर हम मिलेंगे मौत से,
देखना है ऐ मेरे दिलदार , क्या होगा ?


अनुप्रिया...



दिल में धड़कन की जगह अब तेरे अरमान हैं,
मेरे होठों पर सजी जो वो तेरी मुस्कान है।

मेरी आँखों में जो सपना है , अमानत है तेरी,
मैं कहाँ हूँ खुबसूरत , वो तो मोहब्बत है तेरी।

सांसो में है तेरी खुश्बू , जिस्म में अहसास है,
दूर तू है मुझसे कितना, फिर भी लगता पास है।


मंजिलें तूहमसफ़र तू , और तू ही रहगुजर है ,
हाय ! कितना खुबसूरत मेरे जीवन का सफ़र है...

अनुप्रिया...