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सोमवार, 28 मार्च 2011

(in loving memory of my elder brother manuj kehari ,21 .9 . 1976 -26 .3 .2010 )

आज से ठीक १ साल पहले हमने उन्हें खो दिया...अजीब बात ये है कि जिस वक़्त वो जीवन और मृत्यु की लड़ाई लड़ रहे थे, ठीक उसी वक़्त मैं उनसे दूर बैठी अपना ब्लॉग अकाउंट बना रही थी...आने वाली दुर्घटना से अनजान मैं, अनजाने में ही अपने लिए वो मंच तैयार कर रही थी जिसने दुःख, अवसाद, और अकेलेपन के इस एक साल में मुझे सबसे ज्यादा संभाला...
मेरा ब्लॉग पढने वाले  और समर्थन करने वाले अजनबी मित्रों को मेरा बहुत- बहुत धन्यवाद.
वो मेरे दोस्त , दुश्मन भी (क्यों कि हम एक दुसरे से जिस तरह लड़ते थे वैसे दुश्मन ही लड़ा करते हैं)  ,गुरु भी(चलने से ले कर पढने तक, सब उन्होंने ही सिखाया यहाँ तक कि जीवन का उद्देश्य साधना भी उनसे ही सिखा मैंने) , आलोचक भी( मेरी कोई गलती उनकी नज़र से ओझल नहीं थी और न ही वो उसे बक्शते थे,तुरंत आलोचना करते थे) , पता नहीं और न जाने क्या-क्या  थे?  हाँ !पर उनके रहते कभी ये अहसास नहीं था कि अगर कभी वो न हुए तो मैं जीना भूल जाउंगी. मैंने बचपन से ले कर आज तक हजारों बार उनसे ये कहा कि मैं उनसे बहुत प्यार करती हूँ पर ये नहीं कहा कि भाई! मैं आपसे इतना प्यार करती हूँ कि अगर आप कभी नहीं रहे तो मैं जिन्दा लाश बन जाउंगी...आप मुझे छोड़ के कभी मत जाना.
काश कह दिया होता ...तो शायद...


 मैं जब से इस दुनिया को जानती हूँ, मेरे लिए सूरज, चाँद, आसमान और धरती ,और आस पास कि बाकी चीजों कि तरह वो भी सहज  थे. मैंने कभी सोचा ही नहीं कि वो नहीं होंगे...और मैं ...

 हे इश्वर ! उनकी आत्माँ को शांति देना, अपने ह्रदय में स्थान देना...उनसे कहना कि हम सब उनसे बहुत प्यार करते हैं, और जाने- अनजाने अगर हमसे कोई भूल हुई हो तो वो हम सब को छमा कर दें.

(आज मैं कुछ भी सोच समझ कर नहीं लिख रही...जो भावनाएं लिखवा रही हैं बस वो लिखती जा रही हूँ, सो, त्रुटियों के लिए खेद है.)



उस कयामत की शाम को

जिन्दगी हुई हमसे खफा...
रूह के हर जर्रे में
दर्द जैसे घुल गया...

घर की चौखट लाँघ कर
खुशियाँ गई शमशान को...
बूढी हड्डी ने दिया कन्धा
अपने अरमान को...

वो, वंश का जो मान था,
मृत्यु कि गोद में सो गया...
सौभाग्य रूठ कर हमारा
काल के गाल में खो गया...

चूड़ियाँ टूट कर, ह्रदय की
फर्श पर बिखरी हुई थीं ,
घर की शोभा बेवा हो कर
आँखों के आगे खड़ी थी...

माँ की चुप्पी में
सुनाई दे रहा चीत्कार था,
खो गया वो
जो उसके अस्तिव का आधार था...

अपनी कहूँ क्या ,मैं तो उसका
हिस्सा थी ,परछाई थी...
उसका जाना मुझसे मेरी
आप से ही विदाई थी...

आंसुओं के कई समंदर
एक पल में पीना
क्या होता है...
हमसे पूछो दोस्तों
मर- मर के जीना
क्या होता है...


अनुप्रिया....

(in  loving  memory of my elder brother manuj kehari  ,21  .9 . 1976 -26 .3 .2010  )