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शनिवार, 29 जनवरी 2011

काश ऐसा होता !



काश ऐसा होता !
मेरा ख्वाब हकीकत बन जाता,
और वक़्त का पहिया चलते-चलते
इन लम्हों में थम जाता...

काश ऐसा होता !
तुम्हारे बाँहों के घेरे में
मेरी तनहाइयाँ खो जाती,
तुम्हारी आँखों कि गहराई में
मेरी पूरी कायनात गुम हो जाती...

काश, ऐसा होता !
तुम्हारी आँखों के सारे मोती
सिमट आते मेरे आँचल में,
तुम्हारे जीवन के सारे अँधेरे
घुल जाते मेरे काजल में...

काश ऐसा होता !
तुम होते मेरे साथ हमेशा,
जैसे सीप और मोती,
सूरज और रौशनी,
मांग और सिंदूर,
दीपक और ज्योति...
काश ऐसा होता !

अनुप्रिया...

रविवार, 23 जनवरी 2011

जिन्दगी क्या है,एक सफ़र तनहा...

  
जिन्दगी क्या है,
एक सफ़र तनहा...
दोस्त लाखों हैं,
हम मगर तनहा...

ख़ुशी की सुबह में तो
भीड़ बहुत थी लेकिन,
उदास शाम  हुई
तो रहा वो घर तनहा...


जिसकी हर शाख थी
आशियाँ परिंदों का,          
ढली बहार तो रह  गया
वो शजर तनहा...


दर्द बरसता रहा
आँखों से सावन बन कर, 
भींगती रही मैं भी

रात भर तनहा...


अनुप्रिया...







शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

क्या बात है जनाब...




क्या बात है जनाब, मुस्कुरा भी रहे हैं,
दिल का दर्द आँखों में छुपा भी रहे हैं...

ये अदा तो आपकी नई - नई लगी,
कहते हैं राज की बात है, बता भी रहे हैं...

मेरी आँखों में अश्क आपको अच्छे नहीं लगते,
खुद ये कह कर हमें रुला भी रहे हैं...

साया हैं हम, तनहा नहीं छोड़ेंगे आपको
जानते हैं, दामन को छुड़ा भी रहे हैं...

कहते हैं लौट जाओ ! बस दर्द है यहाँ,
मायूस नज़रों से हमें बुला भी रहें हैं...

मैं कोई कागज पे
लिखा नाम नहीं हूँ,
दर्द की दो बूंद में

गल जाउंगी, बह जाउंगी...
मैं तो हथेली पे लिखी
तकदीर हूँ तेरी...
यकीन रख,
कयामत में  भी तेरे  
साथ ही जाउंगी ...


अनुप्रिया...











मंगलवार, 18 जनवरी 2011

खामोशियाँ...



खामोशियों को ना  बेजुबां समझो,
 बंद होठों से ये हर नज्म गुनगुनायेंगी,
तुम  लब्ज  टटोलते रहना  ,
ये बात राज की  कह जाएँगी.

रंग बदलेगा जब उनके गालों का,
मोहब्बत भी बयां हो  जाएगी,
इश्क अल्फाज कहाँ ढूंढेगा,
कयामत जब दिलों पे आएगी.


उलझे जुल्फों से होंगी फरियादें,
कसम नज़रों से उठाई जाएगी,
दर्द रीसेगा धडकनों में जब,
पलक की ओट भींग जाएगी.


छुप के चेहरा निहारेगा कोई...
सादगी में अदा हो जाएगी.

प्यार देगा दिलों पे  जब दस्तख,
बिन कहे दास्ताँ  हो  जाएगी...

अनुप्रिया...       

रविवार, 16 जनवरी 2011

हाँ! मैं औरत हूँ...

www.hamarivani.com

माफ़ करें, ये कोई कविता नहीं है...ये वो पीड़ा है जिसे हर औरत  रोज कमो-वेश सहती हैं...
परन्तु अब बस...


हाँ! मैं औरत हूँ,
तो इसलिए
क्या तुम मेरे अस्तित्व
पर प्रश्नचिन्ह उठाओगे?
मेरी  गरिमा की परिधि नापोगे,
मेरे स्वाभिमान की  सीमा बताओगे.

तुम,
जिसे साँसे लेना मेरे गर्भ ने सिखाया,
जिसे चलना मेरी ऊँगली पकड़ कर आया,
आवाज को आकार देना जिसे मैंने बताया,
मेरी  छमता को  अब ऊँगली तुम दिखाओगे.

बहुत  सह लिया मैंने.
तुम भूल रहे हो,
जिस ताकत पर गुरुर है तुम्हे,
वो मेरी छाती की लहू से बना है...
मुझे मत दिखाओ ये शक्तिशाली  बाजू अपने,
ये वरदान भी मेरा ही दिया है.

जिस प्रसव पीड़ा को सह कर
दिया है जन्म तुमको,
उसका एक अंश भी सहा होता ,
तो समझ पाते तुम
मेरे अन्दर की  ताकत ,
मेरी शक्ति को.

माँ बनी  तो ममता दी मैंने,
प्रेमिका बनी तो समर्पण दिया,
पत्नी बनी तो पूजा तुमको,
बेटी बन कर भी मान ही अर्पण किया.

और तुम,
हर रूप में करते रहे शोषण मेरा,
अपने अभिमान में चूर हो कर तुमने,
घर से चौराहे तक
नरक बना दिया जीवन मेरा.

अंधे हो तुम,
मेरी ममता को कमजोरी मान कर
मेरा अवसाद बना दिया,
बहरे भी हो जाओगे,
लोरी को गर्जन भरा संवाद
बना दिया.

अपने मद में मस्त हो कर
खींचते ही जा रहे हो
मेरे सहन शक्ति की डोर को...
कभी तो टूट ही जाएगी.
तुम्हारे जीवन को रौशन करने वाली
मेरे प्रेम की ये लौ ही
एक दिन
तुम्हारा  अंधा अभिमान जलाएगी.
तुम देखना.....


(आंकड़े और चित्र गूगल के सौजन्य से)

अनुप्रिया...

शनिवार, 8 जनवरी 2011

बहुत बोलती हैं ये आखें तुम्हारी...


आँखें...शरीर का सबसे सुन्दर हिस्सा, मन का आइना, आत्मा की परछाई.
आज एक रचना उनकी खुबसूरत  आँखों के लिए...

शोरो-गुल मच गया है दिल के नगर में,
मन के मौसम में फैली अजब सी खुमारी...
एक नज़र में सुना डाली पूरी कहानी,
बहुत बोलती हैं ये आखें तुम्हारी.


कभी है ये चंचल, हो जैसे कोई झरना,
विरानो को छू कर सिखा दें सवारना,
इनकी गहराइयों में समंदर हो जैसे,
मुझको अच्छा लगे इनकी  तह में उतरना.

कभी गीत कोई , कभी ये गजल हैं,
तुम्हारा चेहरा झील जैसा, ये आँखे कमल हैं,
सजदे में झुक जाऊं दिल मेरा चाहे,
ये आँखें तुम्हारी खुदा की शकल हैं.

ये आँखें तुम्हारी हैं जादू की पुडिया,
इशारों पे अपनी नचाती हैं  दुनिया
उठती हैं पलके तो उगता है सूरज,

जो झुक जाएँ , आ जाये चंदा की बारी.

गुलाबी से  अम्बर  में  काला सा बादल
समेटे हुए हैं काजल की धारी .
एक नज़र में सुना डाली पूरी कहानी,
बहुत बोलती हैं ये आँखें तुम्हारी...

अनुप्रिया...

बुधवार, 5 जनवरी 2011

tumhara hriday...

उसे प्यार हो गया था...एक ऐसे लड़के से जिसने कभी उसकी तरफ देखा ही नहीं. शायद इस लिए कि रंग रूप में बड़ी साधारण थी वो. पर जिस तरह वो उसे चाहती थी वैसी चाहत ना  मैंने  देखी ना सुनी.
उस  लड़की के इकतरफे प्यार की बेचैनी, उसकी तड़प को समझने की कोशिश करती एक रचना...


तुम्हारा ह्रदय
पत्थर की एक ऐसी गुफा है
जिसमे ना कोई खिड़की है
ना कोई झरोखा
और ना ही कोई दूसरा सुराख.
या फिर
वह शुन्य है
जिसमे ना प्यार है
ना नफरत
और ना ही कोई और अहसास.
या
एक ऐसी शिला
जो महसूस नहीं कर सकती,
ना धडकनों में उठती टीस,
ना प्रेम की प्यास.
आओ!
कभी झाँकों  
मेरी आँखों में
और देखो ऐ पासान हृदयी,
तुम्हे पिघलाने के लिए
कितनी रातों तक
अविराम तनहा-तनहा
जलती रही है आँखें मेरी.
आओ !
कभी पूछो मेरी उदास शाम से,
तुम्हारी शुन्यात्मकता को
मधुर कोलाहल देने के लिए
खुद को किस तरह
तनहाइयों के अनंत शून्यों में
खो दिया है मैंने.
ना मैं मेनका हूँ
ना उर्वशी 
और ना ही कोई  और अदभुत सुंदरी,
तुम्हारे प्यार से शुरू हो कर
वही सिमट जाती है
मेरे परिचय की हर धुरी.
अब तुम्ही बताओ
कहाँ और कैसे जाऊं मैं
तुम्हारी आरजू छोड़ कर,
मेरी जिन्दगी का हर रास्ता
ला कर खड़ा कर देता है मुझे
तुम्हारी ही गली ,
तुम्हारे ही मोड़ पर. 

पड़े हैं दर पे तेरे रख के दिल और जान  हम सरकार,
कि  सांसे टूटे उससे पहले  मोहब्बत  तेरी मिल जाये,  
खुदा नाराज़ हो तो हो, मिटा दे हर निशा मेरा,
मगर मिट जाने से पहले एक झलक   तेरी मिल जाये...                                    


अनुप्रिया...