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गुरुवार, 23 सितंबर 2010



हर चेहरा मुझसे पूछता है
तुम हो कहाँ ?
हर नज़र ढूढती है मेरे आस पास
तुम्हारे निशान।
हर दरख़्त जैसे जानता हो अपनी कहानी,
हर शाख को हो जैसे पता
ये दास्ताँ।
कल शाम उड़ती एक चिड़िया ने कहा
चाँद , सूरज ,फूल ,भवरे ,और हवा,
सबके साथी ,और तुम तनहा !
उदास दिन हैं , उदास रातें,
उदास है मेरा जहाँ,
तुम हो कहाँ ?

अनुप्रिया ...

1 टिप्पणी:

गजेन्द्र सिंह ने कहा…

हर दरख़्त जैसे जानता हो अपनी कहानी,
हर शाख को हो जैसे पता ये दास्ताँ।

अच्छी पंक्तिया की रचना की है ........

(क्या अब भी जिन्न - भुत प्रेतों में विश्वास करते है ?)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_23.html