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शुक्रवार, 24 सितंबर 2010




सुना है वक़्त किसी के रोके कभी रुकता नहीं,
मैंने तेरे प्यार में डूबा हर लम्हा रकते देखा है


जो आज तक नहीं रुका किसी के सामने ,
उस आसमान को तेरे क़दमों में झुकते देखा है


वो जिसका देख कर चेहरा दर्द भी हंस देता है,
उन बहारों को तेरे गम में सिसकते देखा है


शायद ये बात सुन कर सभी दीवाना कहेंगे मुझे,
पर मैंने तेरे इशारों पर मौसम बदलते देखा है


ये मेरे इश्क की इम्तहान नहीं तो और क्या है ,
जो मैंने तेरे वजूद में खुद को सिमटते देखा है


शोला अगर जला दे तो सब यकीन भी कर लें,
मैंने तो शबनम से अपने दिल को जलते देखा है


वो क्या हुआ था लब्जों में मैं कैसे बताऊँ?
मैं किस तरह इस बात का यकीन दिलाऊँ ?


मैं जानती हूँ दस्तूर नहीं है ये जहाँ का,
ये माना की आज तक ये कभी नहीं हुआ


मुझे पता है मेरे महबूब तु इंसा है खुदा नहीं,
पर जो देखा है मैंने वो भी कोई ख्वाब मेरा नहीं


जुबान बोलना चाहें फिर भी कह नहीं पाती,
की मैंने तेरी चाहत में क्या - क्या गुजरते देखा है


अनुप्रिया...

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