“Life is full of beauty. Notice it. Notice the bumble bee, the small child, and the smiling faces. Smell the rain, and feel the wind. Live your life to the fullest potential, and fight for your dreams.”
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बुधवार, 22 सितंबर 2010
आज न्यूज़ में सुना मैंने
एक मासूम लड़की की दास्ताँ,
रोती हुई बता रही थी
गई रात क्या हुआ ।
किस तरह बचपन को उसके
वासना में रौंद कर
उसके ही चाचा ने
उसकी मासूमियत का शिकार किया।
घर में सब हैरान थे,
ऐसा भी होता है भला !
और आपस में दुहाई
दे रहे थे नैतिक मूल्यों का।
मैं मगर चुप चाप
टीवी को निहारे जा रही थी,
उसके आंसू अपनी आँखों
में उतारे जा रही थी।
ऐसा लग रहा था है वो
मेरे अतीत का आइना,
जो कुछ भी वो कह रही थी
साथ मेरे हो चूका।
आज तक जो चुभ रहा वो
दर्द मैंने भी सहा है,
धीरे धीरे दिल का हर एक
जख्म ताजा हो रहा है।
ना जाने कितनी रातें गुजरी
आंसूं भरी आँख में,
पर किसी से कह ना पाई
हाय ! मन की बात मैं।
जिस कहानी पर हैरत है सबको
हाँ उसे मैं जी चुकी हूँ
अपमान का ये घूंट मई भी
बालपन में पी चुकी हूँ।
और मैं ही क्यों ,
यहाँ अनगिनत हैं और भी
जिनकी इज्जत और अस्मत
अपने ही घर में लुटी।
है अजब ये बात बेटी
अपने घर का मान है,
और घर ही में उसका
लुट रहा सम्मान है।
अभी इन बातों में उलझी
ही हुई थी मैं तभी,
८ बजे शाम को
दरवाजे की घंटी बजी।
पापा ने खोला तो देखा
मेरे चाचा जी खड़े थे
उम्र और कद काठी में
वो मेरे पापा से बड़े थे।
सबने उठ कर बड़े अदब से
अपना अपना सर झुकाया
और बातों ही बातों में,
न्यूज़ का किस्सा सुनाया।
चाचा जी ने लाल हो कर
क्रोध में सबसे कहा ,
ऐसे पापी लोगों को वो
फांसी पर देते चढ़ा।
उनकी बातें सुन के जैसे
दिल में उठी टीस सी ,
और वहां से उठ के मैं
अपने कमरे में गई।
अपने वार्डरोब से निकाली
मैंने एक लम्बी सी रस्सी,
और ले जा कर के उसको
सामने उनके रक्खी ।
पहली बार मिला कर नज़र
उनकी नज़र से मैंने कहा,
एक फांसी का फन्दा
मान्यवर !आपके नाम भी...
आज जैसे मेरे बरसों की
तड़प को न्याय मिला,
मेरा मुजरिम सामने मेरे
खड़ा था सर झुका।
मेरा खोया विश्वास मुझको
आज वापस मिल गया,
उस मासूम लड़की ने दिखाई
हिम्मत जो ,उसका शुक्रिया।
अनुप्रिया...
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3 टिप्पणियां:
ओह!बेहद मार्मिक और नये आयाम देती एक संवेदनशील रचना……………सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है इस दर्द को वो भी एक सीमा तक ये तो कोई भुक्तभोगी ही समझ सकता है।
बहुत ही संवेदनशील ....मैं कल्पना कर रही हूँ इस परिस्थिति की...
बहुत संवेदनशील एवं मार्मिक रचना.
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