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शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

एक चांदनी रात... कितना हसीं ख्वाब ...आये थे आप...




चांदनी रातों की रंगत समेटे
सितारों की चादर बदन पे लपेटे,
गुम सुम अकेले नदी के किनारे,
छुप छुप के जो मेरा चेहरा निहारे,
अगर तुम नहीं थे तो फिर कौन था वो ?


वो सपनों से सुंदर , सजीली निगाहें
वो संदल के जंगल सी फैली हुई बाहें,
वसंती पवन सी वो चंचल निगाहें,
वो मुरली सी बोली थी किसकी बताओ ?


चलो ! माना झूठी हैं मेरी निगाहें,
तो फिर क्यों ये कहानी हवा गुनगुनाये,
ना पलकों की चिलमन में आँखें चुराओ ,
कैसी पहेली है कुछ तो बताओ ?


शरारत से ना देखो हमारी तरफ यूँ,
अगर इश्क है तो छुपाते हो तुम क्यों,
झूठी झिझक का ये पर्दा हटाओ,
तुम्हारी हूँ मैं , मुझको अपना बनाओ।


मुझे है यकीन वो तुम्ही थे ,तुम्ही थे,
मगर फिर भी एक बार सच सच बताओ ,
अगर तुम नहीं थे तो फिर कौन था वो।

अनुप्रिया...

3 टिप्‍पणियां:

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

प्यार के एहसासों में गुनी सुंदर रचना.

आपकी पोस्ट आज चर्चा मच पर ली गयी थी...कृपया वहाँ आकर हमें अपना प्रोत्साहन दें.

और कृपा कर के ये वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें.

Anupriya ने कहा…

thanks for your valuble compliment.

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

anupriya ji
bahoot hi sunder jazbat me lipti hui sunder kavita....

upendra ( www.srijanshikhar.blogspot.com )